नागफनियों के महबूब
काव्य साहित्य | कविता डॉ. प्रभाकर शुक्ल1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कुकुरमुत्तों के नीचे हरी दूब है!
रेत की नम्रता तुमने देखी कहाँ
शूल की मित्रता तुमने देखी कहाँ
दीन की सभ्यता तुमने देखी कहाँ
लोग समृद्धियों में रहे डूब हैं!
गंध ही तो नहीं फूल का नाम है
रूप ही तो नहीं व्यक्ति का दाम है
ज़िन्दगी के बहुत और आयाम है
नागफनियों का भी कोई महबूब है!
कीच के बीच में है कमल का उदय
एक ही गर्भ में कोल हीरक उभय
पाश में विषधरों के सुगन्धित मलय
फ़ैसले ज़िन्दगी के बहुत ख़ूब हैं!
एक कण का शिला से न कम मूल्य है
हर कुशा एक मायने में चाणक्य है
एक क़तरा धरा पर ना नगण्य है
उसकी मंज़िल समुन्दर में मंसूब है!
कुकुरमुत्तों के नीचे हरी दूब है!
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