सच
काव्य साहित्य | कविता बिमलेश शर्मा ’बिमल’1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
क्या यह सिर्फ़ एक कल्पना है।
या फिर एक विचार है।
कइयों ने बनाया इसे अपना आदर्श है।
कहते हैं यह सभ्यता का आधार है।
यह सुचारु जीवन की एक नीति है।
यह नैतिकता का मूल है।
यह धर्म का अस्तित्व है।
यह व्यक्तिगत उसूल है।
अद्भुत होता है यह सच।
सभी के साथ जुड़ा एक सच है।
व्यक्ति विशेष से बड़ा यह सच है।
हर किसी का अपना एक सच है।
ईश्वर की ही तरह बँटा यह सच है।
आदर्शों के लिए छाँव है यह सच।
ग़रीबी के लिए घाव है यह सच।
यह परीक्षा भी लेता है
किसी का यह बना पछतावा है।
किसी की ज़िन्दगी बनी नर्क है।
कोई इसे कमाई का ज़रिया समझता है।
और किसी के लिए कोरा तर्क है।
सच के लिए कभी धर्मयुद्ध लोगों ने लड़ा था।
पांडव और पराजय के बीच सच खड़ा था।
आजकल सच अक़्सर पराजित दिखता है।
कौड़ियों के भाव गली नुक्कड़ में बिकता है।
सच की क़सम खा सच के मंदिर में
बदल दिए जाते हैं सच।
न्याय की देवी के तराज़ू तले
मसल दिए जाते हैं सच।
कभी धर्म ने कहीं ईमान ने
इस सच को किया था परिभाषित।
कहीं मज़हब ने कभी न्यायलय ने
इस सच को आज किया है पराजित॥
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Prakash Kukreja 2022/02/25 07:52 PM
Bimal Sir, Amazing. Sach ko pheli baar itni gehrai se jaan hai, Sach. Very nice, my favorite lines are : सच की क़सम खा सच के मंदिर में बदल दिए जाते हैं सच। न्याय की देवी के तराज़ू तले मसल दिए जाते हैं सच।