सत्य सब आज दिखने लगा है
शायरी | ग़ज़ल डॉ. विकास सोलंकी15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
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सत्य सब आज दिखने लगा है
झूठ पैसों पे बिकने लगा है
दूध पानी में ऐसा मिलाया
हंस भी आज झखने लगा है
हाल ऐसा हुआ है चमन का
पेड़ मुर्झा के गिरने लगा है
बिजलियाँ गिर रही हैं शहर में
गाँव का मन सिहरने लगा है
है हवाओं में फैला ज़हर यूँ
दम यहाँ अब तो घुटने लगा है
हौसले से निकल अब सफ़र में
देख सूरज निकलने लगा है
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