शब्द हूँ मैं
काव्य साहित्य | कविता समीर उपाध्याय15 Jan 2022 (अंक: 197, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
शब्द हूँ मैं।
कभी रंग बदलता हूँ
कभी रूप।
कभी ख़ुशी देता हूँ
कभी ग़म।
कभी धूप बनता हूँ
कभी छाँव।
कभी पतझड़ लाता हूँ
कभी वसंत।
कभी प्रकाश फैलाता हूँ
कभी तिमिर।
कभी गुंजन करता हूँ
कभी शोरगुल।
कभी अमी-धारा बनता हूँ
कभी विष-प्याला।
कभी क्रांति की मशाल बनता हूँ
कभी आरती की लौ।
कभी स्वर्ग खड़ा करता हूँ
कभी नरक।
कभी भावविभोर बनाता हूँ
कभी भावशून्य।
कभी ब्रह्म स्वरूप बनता हूँ
कभी दानव रूप।
कभी जीवन देता हूँ
कभी मृत्यु।
मैं शब्द हूँ।
मेरी लीला को आज तक
ना कोई समझ पाया है
ना समझ पाएगा।
क्योंकि
मैं अपरागम्य हूँ।
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