सिलवटों का हिसाब
काव्य साहित्य | कविता देवेश कोष्टी1 Oct 2025 (अंक: 285, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
कुछ रिश्ते होते हैं,
जैसे पुरानी किताबों के पन्ने।
हर मोड़ पर, एक कहानी,
हर परत पर, एक निशान।
कुछ यादें होती हैं,
जैसे कपड़ों पर पड़ी सिलवटें।
कितना भी सुलझाओ,
फिर भी उनका हिसाब रह जाता है।
कुछ लोग होते हैं,
जो चले जाते हैं, पर कहीं नहीं जाते।
उनकी ख़ुशबू, उनकी आहट,
हवा में घुली रह जाती है।
समय एक धागा है,
जो रिश्तों की गाँठों को बुनता है।
कहीं कसता है, कहीं ढीला छोड़ता है,
पर कभी तोड़ता नहीं।
हम बस चलते जाते हैं,
अपने अतीत को साथ लिए।
कहीं पर मुस्कान खिलती है,
कहीं पर आँखें नम हो जाती हैं।
और अंत में,
सिर्फ़ एहसास रह जाता है।
एक अधूरा सा गीत,
जो दिल के किसी कोने में गूँजता रहता है।
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