स्त्री
काव्य साहित्य | कविता अनुश्री श्रीवास्तव1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती
तीनों का संचार करने वाली स्त्री
क्या सिर्फ़ कल्पना में ही अस्तित्व रखती है,
क्यूँकि यथार्थ में तो वह—
त्याग की देवी, धैर्य का सागर,
सर्वस्व न्योछावर करने वाली ही प्रतीत होती है
वंदनीय, पूजनीय और आदरणीय—
क्या सिर्फ़ ग्रंथों में ही लिखी जाती है?
क्यूँकि यथार्थ में तो वह
शोषित, प्रताड़ित और आलोचनीय ही सुनाई पड़ती है
संस्कृति, सभ्यता और शालीनता का प्रतीक—
क्या सिर्फ़ रचनाओं का अलंकार है
क्यूँकि यथार्थ में तो
उसकी अशिष्टता, अश्लीलता और
छल कपट की ही आपबीती बताई जाती है।
सत्य क्या असत्य क्या
यह तो विधाता ही समझा सकता है,
परन्तु स्त्री का स्त्रीत्व क़ायम रहे
बिना डरे और सहमे, बिना किसी के साँचे में ढले,
बिना किसी को तिरस्कृत किये यही उसकी पहचान है,
यही परिवार की नींव है और
यही आधुनिक समाज की आवश्यकता है॥
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टिप्पणियाँ
R N Srivastava 2025/09/20 11:33 AM
Very nice poem
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Pankaj 2025/09/20 11:34 AM
Heart touching