सुख के दिन फिर से आएँगे
काव्य साहित्य | कविता ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
सब्रकर तू बंदे यह दिन गुज़र जाएँगे,
सुख के दिवस जीवन में फिर से आएँगे।
छँटेगा कोहरा अतिशय भय व ग़मों का
हर चेहरा फिर ख़ुशी से मुस्कुराएगा।
है मचा जो कोरोना का महाआतंक,
सूझबूझ से हम सभी इसे भगाएँगे।
सूने पड़े कब से बाज़ार गाँव शहर के
फिर से अपनी धमाचौकड़ी मचाएँगे।
सूने पड़े हैं विद्यालय बहुत दिनों से,
अब बच्चे वहाँ फिर से शोर मचाएँगे।
लॉकडाउन में घर में बंद बाबा दादी,
सुबह-सुबह उपवन में सैर को जाएँगे।
सब्र कर तू बंदे यह दिन गुज़र जाएँगे,
सुख के दिवस जीवन में फिर से आएँगे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं