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सुंदर बचपन!! 

सोनी सी मुस्कान है वो, 
हर माँ की जान है वो!! 
ये बच्चे मन के सच्चे, 
थोड़े कच्चे, थोड़े पक्के!! 
 
जब कभी रोने लगे, तो ये ममता इन्हें बहलाती है॥
फिर प्यारी सी लोरी, और मीठी नींद आ जाती है!! 
 
इस गोद में खेलते-खेलते, हमने बहुत कुछ सीखा, 
ग़रीबों का दुख, और अमीरो का सुख देखा! 
कभी ये सोचता था, ऐसा क्यों है हमारा जहाँ, 
किसी को अच्छाई, तो किसी को बुराई की ओर फेंका!! 
 
संस्कारों की राह पर हमने चलना सीखा, 
जीवन की सच्चाइयों को परखना सीखा, 
बिना झूठ के सहारा लिए, 
अपनी बातें पर अड़ना सीखा। 
 
यूँँ तो सब कहते थे, मस्ती करो, 
बैर दूर कर, दोस्ती करना सीखा। 
लड़ते, झगड़ते और कंचे गोली खेलते 
हुए बचपन निकल गया। 
देर से ही सही, पर सही रास्ता मिल गया। 
अब जा कर जीवन का अर्थ समझ में आया, 
और मन में, कुछ करने का ख़्याल आया!! 
 
अब हम बड़े हो गए, कंधों पर ज़िम्मेदारी आई॥
मन में तो ठानी ही थी, पर अब करने की बात आई! 
यूँँ तो सोच कभी घबरा जाता था, 
पर वो हाथ सर पर पड़ते ही, मैं सो जाता था!! 
 
गुज़र गए वो दिन, जब हम बच्चे थे, 
थोड़े कच्चे, थोड़े पक्के थे। 
याद आती है वो यारी हमें, 
कंचे, गोली की क़सम! 
अगर ले चले, कोई अब भी हमें, 
हम चलेंगे उसके संग . . .!!! 
 
तो बच्चे सीखा जो आपने, अपने बचपन में, 
करो ज़रा उस पर ध्यान! 
एक ज़िम्मेदार नागरिक की मिसाल बनो तुम, 
करके अच्छे काम . . .!!! 
 
-रौनक़ अग्रवाल

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