उम्मीदों का आकाश कभी झुकता नहीं
काव्य साहित्य | कविता ब्रह्माकुमारी मधुमिता 'सृष्टि'15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हौसले की उड़ान भर तू राही,
कभी थमना नहीं
चलता चल जीवन पथ पर,
क्यूँकि उम्मीदों का आकाश
कभी झुकता नहीं
बाधाएँ तो आएँगी,
पर निराश होना नहीं
घड़ी है अग्निपरीक्षा की,
राही तू डरना नहीं
चाहत है गर, मंज़िल पाने की
राही तू भटकना नहीं
भरोसा है गर, ख़ुद पर और ख़ुदा पर,
राही तू थमना नहीं
मंज़िल ख़ुद चलकर आएगी,
मार्ग से अपने हटना नहीं
क्यूँकि उम्मीदों का आकाश
कभी झुकता नहीं
जबतक हो एक भी साँस बाक़ी,
तब तक जीने की चाह छोड़ना नहीं
करो वही, जो सोचा है,
समय कभी थमता नहीं
मुस्कुराकर ग़म
भुलाता चल राही
बेकार का गट्ठर
उठाकर चलना नहीं
ये दुनियाँ तो रैनबसेरा है,
किसीको यहाँ रहना नहीं
जो आया है, सो जायेगा,
व्यर्थ के जाल में फँसना नहीं
प्यार लुटाता चल सभी पर,
मुख कभी किसी से मोड़ना नहीं
अपने भी होंगे, सपने भी होंगे,
अपनों के बिना जीवन नहीं
क्यूँकि उम्मीदों का आकाश
कभी झुकता नहीं
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