उसका जाना
काव्य साहित्य | कविता इला कुमारी1 Sep 2024 (अंक: 260, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
उसका जाना
इला कुमारी
उसका जाना
दहलीज़ पार करना
बहुत ही दुखद था
बहुत ही कठिन था
ढहे हुए पुराने मकान की तरह
जर जर शरीर ढोते बूढ़े
पिता को छोड़कर चले जाना
क्योंकि जाना व्याकरण की
बहुत ही कठिन क्रिया है . . .
बूढ़े पिता की आँखों में जाने का अर्थ
बहुत गहरा था . . .
अपने हृदय में बेटी के पद का निशान ढूँढ़ता
उनके स्मृति पटल पर समय द्वारा
कुछ क्षण के लिए ‘जाना’ शब्द लिख जाता
फिर भूला दिया जाता
समाज द्वारा विशेषण गढ़ा गया
‘विक्षिप्त बूढ़ा’
बेटी के भाग जाने का प्रतिफल
भोगता बूढ़ा
समाज की संरचना का भार
ढोता बूढ़ा . . .
लेकिन बूढ़े पिता की आँखों में
कई रास्ते बने हुए थे
उसके लौट आने के
कभी वे खिड़कियों के पार देखते
कभी दरवाज़े के पास आकर कुंडियों को ग़ौर से निहारते हैं
यहाँ जाना और लौटना में
बस इतना ही अंतर था
जैसे जीने और मरने के बीच का होता है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं