वह आग ले आया था
काव्य साहित्य | कविता डॉ. देवराज15 Apr 2023 (अंक: 227, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
वह आग ले आया था
देवताओं से छीन कर
देश-देश की
पुराकथाओं के
नायकों की तरह
युद्ध करके,
भयानक युद्ध था वह
युद्ध से भयानक था
उसका अधूरापन . . .
उससे भी कहीं ख़तरनाक
युद्ध की भयानकता का नृत्य!
जिसे निरंतरता ने
दे दिया था श्राप
हमेशा होते रहने का
देवताओं की बस्तियों के बाहर
(सोमरस-चषकों
और मदनोत्सवों की पवित्रता
खंडित हो सकती थी वहाँ)
कहीं भी
भाषा और भोजन की तलाश में
हाँफते लोगों की
दिशाहारा भीड़ों के बीच,
युद्ध की व्याख्याओं को
समेट कर रख सकती थीं
केवल स्वर्ग और नरक की
रहस्यमयी संधि-सीमाएँ
अपनी स्मृतियों में
इतिहास के नव-नवीन ड्राफ़्ट
अपनी प्रच्छन्न घृणा की
क़लम से निर्मित करके
उछाल देने के लिए
उन्माद और पागल शोर की शक्ल में
ताकि गर्भ में ही
सीख जाएँ बच्चे
हिंसा और अहिंसा में
भेद करने वाले सवालों के
सिर काटने के तरीक़े
चाकू, चप्पल और लोकतंत्र का
एक ही अर्थ सिद्ध करने की
अधुनातन प्रणालियाँ
और भूख के जंगल को
हरा-भरा रखने की चालाकियाँ,
वह आग ले आया था
हमारे चूल्हों के लिए
उसने चाहा था
कि जब हम
दिन भर मज़दूरी कर
थके-हारे लौट कर
मोटे-झोटे अनाज की
गरम रोटियाँ खाएँ
तो अँगूठे और उँगलियों के साथ
हमारी हथेलियाँ भी
गरमाहट महसूस करने लगें
आने वाले कल के विचार की!!
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