अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

वृक्ष की करुण गाथा

है वृक्ष की ये करुण गाथा 
तुमको मैं सुनाता हूँ, 
कटने से इसके पृथ्‍वी पर पड़े
प्रभाव को समझाता हूँ। 
  
वृक्ष-वृक्ष से मिलकर 
हरा भरा वन बनता है, 
इन्‍हें देखकर काले बादलों 
का डेरा वहाँ थमता है। 
 
वन देखकर काली बदरा 
खूब बरसती है, 
तेज़ पानी में मिट्टी बह न जाए 
इसलिए जड़ें मिट्टी कसके सहजती हैं। 
 
गर्मी में तीव्र हवा
खुली मिट्टी को उड़ा ले जाती है, 
वृक्ष की जड़ों से गर बँधी रहे
तो बची रह जाती है। 
 
जंगल देते हैं आश्रय और खाना
पशु पक्षियों को,     
रोटी कपड़ा और मकान
देते हैं मनुष्‍यों को। 
 
मनुष्‍य का अस्तित्‍व ही
टिका है वनों पर,         
प्राणवायु का उत्‍पादन
निर्भर है वनों पर। 
 
मरकर भी वृक्ष मनुष्‍य के    
काम आता है,     
ईंधन, लकड़ी, चारा, खाद ये
हमें दे जाता है। 
 
कारखानों से निकली विषैली गैसें, 
वृक्ष ले लेता है,     
बदले में हमें ये प्राणवायु
ही देता है। 
 
धूल, शोर, गर्मी, अन्‍य प्रदूषणों
को आसानी से सह लेता है, 
फिर भी करते रहें अपना कर्म    
ये सीख हमें देता है। 
 
बारिश, तूफ़ान, आँधी, झंझावात
कितने ही ये सहता है, 
फिर भी जीवन संग्राम में रहें डटे
ये हमें कहता है। 
 
उद्योगों, बांधों, भवनों, पूलों, रेलों, खेतों
की ख़ातिर कट रहे हैं वन, 
अभाव में इनके ये पृथ्‍वी 
ज़हरीली रही है बन। 
 
एक समय आएगा ऐसा
जब वृक्ष इतिहास हो जाएगा, 
कभी होते थे वृक्ष ऐसे
शिक्षक शिष्‍यों को ये बताएगा। 
 
फिर बारिश न होगी
क्यूँकि वृक्ष न होंगे, 
बादल फिर कभी न बरसेंगे
क्यूँकि वे कहीं न ठहरेंगे। 
 
वातावरण में नमी न रहेगी 
गर्मी 50 से 55 डिग्री बढ़ेगी, 
दिन में जितनी गर्मी रहेगी
रात में शीत उतनी बढ़ेगी। 
 
मिट्टी उड़ती रहेगी और
रेगिस्‍तान बढ़ता जाएगा, 
बचा पानी जलाशयों में
उबलता जाएगा। 
 
और हम खड़े-खड़े देखते
रह जाएँगे, 
पानी की इक बूँद 
धरती फाड़े भी न पाएँगे। 
 
बिन पानी अन्‍न न होगा, 
और पहले की तरह तन न होगा, 
विषैली गैसें वातावरण में 
ज़हर घोलती जाएँगी। 
 
नई पीढ़ियाँ अनुवांशिक
रोगों का घर कहलाएँगी, 
गर्मी से तटों की बर्फ़ पिघलेगी
इधर गर्मी कई ज़िंदगिया निगलेगी। 
 
बर्फ़ का पानी समुद्रों के रास्‍ते
तटीय देशों को डुबोएगा, 
और धीरे-धीरे इस धरा पर
इंसान लापता हो जाएगा। 
 
गर कहानी में हो सच्‍चाई
दाद देना मेरे भाई, 
एक वृक्ष तुम भी लगाना
और दूसरे को गुण बताना। 
 
संकल्‍प ले लो हर वर्ष
तुम एक वृक्ष लगाओगे, 
आने वाली संतानों को
प्राणवायु दे जाओगे। 
 
जंगलों की रक्षा करो
अपनी संतान मानकर, 
ये तुम्‍हारी पीढ़ियों की 
करेंगे सेवा भगवान मानकर। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

हितेश सांखला 2022/10/16 02:08 PM

विज्ञान और साहित्य दोनो को एक कर दिया जाधव सर आपने

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं