यहीं हूँ मैं
काव्य साहित्य | कविता आकाश जैन10 Feb 2016
यहीं हूँ मैं,
बिखरे पन्नों सा,
निकल गए जो,
ज़िन्दगी की किताब से,
यहीं हूँ मैं,
टूटे ख़्वाब सा,
देखे थे जो,
किसी अपने के साथ में,
यहीं हूँ मैं,
बुझते चिराग़ सा,
जलाया था जो,
उसकी राहों में,
यहीं हूँ मैं,
डूबती कश्ती सा,
उतारी थी जो,
अरमानो के समंदर में,
यहीं हूँ मैं,
मिटती याद सा,
ज़हन में थी जो,
किसी अपने की,
यहीं हूँ मैं,
समेटने को तैयार,
फिर एक बार,
क़िस्मत को॥
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