ये घमंड तेरा किस बात का
काव्य साहित्य | कविता अन्विता15 Oct 2025 (अंक: 286, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
ये घमंड तेरा किस बात का
किस चीज़ का दिखावा
न गरज तेरी बादल की
न सिंह की तरह तू दहाड़ता है
ख़ुद को समझता ये नर महान
क्या तू नारायण है?
नर है, सीमाओं को न पार कर
अपनी मर्यादाओं का तू पालन कर
तू नारी को नीचा है समझता
क्या तू भूल गया माँ की वो ममता
अगर तू सिंह है, वो है सिंह पे सवार
शक्ति है वो, प्रकृति है वो महान
सबसे ऊपर है उसका आत्मसम्मान
दुर्गा है वो, वो ही महामाया
शक्ति स्वरूपा, ये जग उसमें समाया
जगत-जननी है वो
जीवन-संगिनी है वो
कभी किसी की भगिनी
कभी किसी की सहेली है वो
कलियुग में भी हुई देवी अवतरित है
मानव के रूप में, देह सहित है
एक थी रानी महान,
चंडी बन अंग्रेज़ों को किया था बाहर
एक पद्मावती,
आत्मसम्मान बचाने हुई वो सती
रानी कर्णावती, दुर्गावती, ताराबाई महान
जिनके रण-कौशल से निकल जाते थे शत्रुओं के प्राण
अहिल्याबाई देवी, लोकमाता थी
किये मंदिर निर्मित
नए भारत की वो निर्माता थी
थीं अनेक नारियाँ, लड़ीं स्वतंत्रता संग्राम
अपनी हिम्मत से पाया था ये मुकाम
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