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युद्ध

नहीं चाहिए युद्ध, कहते हैं गौतम बुद्ध
किसने इसे पुकारा है ज़मीन पर उतारा है
 कितने हुए बेघर और कितनों को बेमौत मारा हैं
जीवन को रखो निर्मल व शुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध, कहते हैं गौतम बुद्ध
 
महत्वकांक्षी आएँ मेरी भी है शायद तुम्हारी भी हैं
करेंगे पूरी मिल बैठकर झांठ कर बाँट कर
मिटायेंगे दूरियाँ दिलों की आपस में बैठकर
ना करेंगे तबाही अपने स्वार्थ और स्वाभिमान के लिए
करेंगे काम देश के निर्माण के लिए
आम जनता के समान आयुष्मान के लिए
करो ऐसे काम और बन जाओ प्रबुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध 
 
लगता है समय चीज़ों को बनाने में
फ़सलों को उगाने व पकाने में
 नौनिहालों को नौजवान बनाने में
और नौजवानों को देश प्रेमी बनाने में
 बस क्षणिक आत्म उल्लास के लिए
 कुछ ही समय लगता है सब को मिटाने में
करके तपस्या जहान बनाया है सभी कुछ इस में समाया है
ना करेंगे नष्ट इसको कर ले मन को शुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध
 
अगर हो गया युद्ध कुछ नहीं बच पाएगा
सब हो जाएगा नष्टअंधकार छा जाएगा
बिछड़ जाएगा माँ का लाल और शहीद हो जाएगा
कोई पति अपनी पत्नी से ना मिल पाएगा
क्या होगाउन मासूमों का जिनका मूल अधिकार छिन जाएगा
बिना किसी ग़लती के उन सब का भविष्य मिट जाएगा
कल्पना करके रोता है मन दिल होता है छू वध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध
 
उजड़ी चीज़ों को बस आने में समय लगता है
गिरी इमारतों को बनाने में समय लगता है
बिखरे हुए गाँव को बस आने में समय लगता है
नहीं मिलता इंसान का जीवन बाज़ार में
इंसान का जीवन बनाने में समय लगता है
चलो मिल बैठे खोल दे दुश्मनी की गाँठें
मिलकर बनाएँगे नई दुनिया करके आत्मग्लानि को शुद्ध
नहीं चाहिए युद्ध कहते हैं गौतम बुद्ध

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