आग (सनी गंगवार ’गुरु’)
काव्य साहित्य | कविता सनी गंगवार 'गुरु'1 Sep 2020
ये भूख की आग है साहब
मौत से नहीं डरती
पैदल ही चलने को मजबूर करती है
हज़ारों मील
किस लिए चलते हैं
आग बुझाने के लिए
ज़रूरत नहीं है इनको
करोड़ों रुपए के सूट की
फटे-पुराने कपड़ों ही बहुत हैं
तन ढकने को
इनको ज़रूरत है
सिर्फ़ रोटी की
इनको चिंता नहीं है
अपने बच्चों के भविष्य की
इनको चिंता है
अपने बच्चों की एक वक़्त रोटी की
हुक्मरानो तुमने बंद तो कर दिया
ज़रूरत पूरी नहीं की
मज़दूरों की
मौत का तांडव हो रहा है
भुखमरी का
महामारी का
ये भूख की आग है साहब
यूँ ही शांत नहीं होती
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