चले जा रहे हैं.....
काव्य साहित्य | कविता विकास वर्मा7 May 2015
चले जा रहे हैं बस चले जा रहे हैं,
नहीं पता किधर, नहीं पता कहाँ,
बढ़े जा रहे हैं बस बढ़े जा रहे हैं।
झूठे हैं रास्ते झूठी हैं मंज़िलें,
झूठे हैं हमसफ़र झूठे हैं क़ाफ़िले,
झूठी हैं ख़्वाहिशें झूठी हैं हसरतें,
झूठी बुनियादों पे झूठी इमारतें,
झूठी उम्मीदों पे जिये जा रहे हैं,
जीने की चाह में मरे जा रहे हैं।
चले जा रहे हैं बस चले जा रहे हैं,
नहीं पता किधर, नहीं पता कहाँ,
बढ़े जा रहे हैं बस बढ़े जा रहे हैं....।
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