गलियों गलियों हंगामा है
शायरी | ग़ज़ल स्व. अखिल भंडारी1 Mar 2019
गलियों गलियों हंगामा है
घर में इक सन्नाटा सा है
कौन यहाँ रहता था पहले
अब वो शख़्स कहाँ रहता है
उजले उजले कपड़ों वाले
मिट्टी में क्या ढूँढ रहा है
बुझा बुझा सा उस का चेहरा
उस के दिल में क्या रहता है
ऐसा भी क्या ग़म है उस को
हँसते हँसते रो पड़ता है
अपनी मर्ज़ी के मालिक सब
कौन किसे समझा सकता है
गूंगे बहरों की बस्ती है
शोर मगर अच्छा ख़ासा है
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नज़्म
कविता
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