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हनुमान की बेकली

देवलोक में भ्रष्टाचार फैल गया था। दिन रात हनुमान जी को लेकर ख़बरें प्रसारित हो रहीं थीं। देवों में खलबली मची हुई थी कि आज हनुमान को लेकर ख़बरें प्रसारित हो रही हैं कल हमारी बारी होगी इसलिए सभी देवता इधर-उधर भागकर ब्रह्मा जी को खोज रहे थे। देवताओं के साथ नारद भी साथ हो लिए थे। कोई मामला हो और नारद साथ ना हों ऐसा भला इतिहास में कभी हुआ है; और रास्ते भर वे आपस में बस मनुष्यों की बात करते चले। कोई कहता कि मुझे कम पूजा जा रहा है, तो कोई कहता कि मुझे ठंड में गर्म पानी से क्यों नहीं नहलाया जा रहा? कोई कहता कि इस वर्ष कम नारियल चढ़ा। लेकिन इस सबका सारा दोष ब्रह्मा जी के सर मढ़ दिया जाता। कोई कहता उन्होंने ही इन मनुष्यों को ज़्यादा बुद्धि दे दी। तभी इनकी अक़्ल ठिकाने नहीं रहती। बात करते-करते सभी देवता ब्रह्मा जी के यहाँ पहुँचे तो द्वार पर द्वारपालों ने रोक लिया तो देवता चिल्लाने लगे; लेकिन द्वारपालों ने आगे न बढ़ने दिया। कहा कि - अभी ब्रह्मा जी का मौन व्रत चल रहा है आप सभी एक सप्ताह बाद आकर मिलिए उससे पहले दिख न जाइयेगा नहीं तो जेल पहुँचा देंगे।

कुछ देवता भड़कते हुए बोले, "सब बहाना है, सब चालाकी है... हम ऐसे पीछा नहीं छोड़ने वाले।"

किन सैनिकों के सामने उनका बस न चला तो सभी हारकर शिव जी के पास पहुँचे। शिव गुस्से में लाल हुए पड़े थे। उनका डमरू डग-डग बज रहा था, सर्प फुँकार रहा था, भभूति उड़ रही थी, चाँद काला पड़ा हुआ था और तपन से गंगा प्रवाहित होने को थी। लेकिन कोई देवता उनके ग़ुस्से का कारण न समझ पा रहा था सिर्फ़ आगे खड़े नारद व पीछे खड़े हनुमान ही उस ग़ुस्से को समझ रहे थे; लेकिन दोनों मौन ही रहे और कुछ भी ना बोले। जब शिवजी का कोई उत्तर प्राप्त ना हुआ तो उन्होंने मन ही मन हज़ारों गालियाँ दीं और क्षीरसागर का रुख़ किया और सीधे विष्णु जी के पास पहुँचे।

विष्णु अपने आनंद में लीन थे। उनके आनंद में खलल सिर्फ सुनामी के दौरान ही आया था, बाक़ी छोटे-मोटे ज्वार-भाटों की तो उनको लत हो ली थी। देवी-देवताओं के पहुँचते ही उनकी चिंता को भाँप लिया और बोले, "मैं आप सभी की चिंता समझता हूँ।"

लेकिन नारद कहाँ चुप रहने वाले थे बोल ही पड़े, "प्रभु! आप कुछ नहीं समझते हैं, यदि आप समझते तो इतने वर्षों से इन मनुष्य ने मेरे नाम को विशेषण के तौर पर ले रखा है और मेरा नाम हर जगह उपयोग में ले रहा है। आपको पूरी रक़म देकर भी चौथा स्तम्भ बनकर बदनाम हूँ। चाहे किसी की शादी हो, पैसे का काम हो या व्यापार हो। क्या यही करने के लिए ब्रह्मा ने इन मनुष्यों के लिए यह सृष्टि बनाई थी? लेकिन अपना दर्द तो मैं भूल जाऊँ लेकिन हनुमान भैया का दर्द...! उनका दर्द मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।

"कभी कोई भगवा कुर्ता-धोती वाला दलित कहता है, तो कोई मुसलमान कहता है, तो कोई मंत्री क्षत्रिय कहता है, तो कोई आदिवासी। प्रभु आप भी पाँव पर पाँव धरे बैठे हैं; कुछ नहीं कहते ना कुछ करते। शिव क्रोध में हैं; पता ना जाने कब खुलेगी उनकी तीसरी आँख और ब्रह्मा तो मौन व्रत का बहाना लिए बैठे हैं; जाने कब टूटेगा उनका मौन व्रत। प्रभु हमारे भैया हनुमान को यह सब कहा जाएगा और हम सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? यह तनिक भी नहीं होगा।" बाक़ी सब भी ज़ोरों से बोल पड़े नहीं होगा, नहीं होगा।

इतने में इंद्र बोल पड़े कि प्रभु जाति धर्म के मामले तक तो ठीक था। लेकिन सुना है कि कुछ लोग हमारे भैया को लाल सलाम वाले कहने लगे हैं और तर्क देते हैं कि- लाल लंगोटा, लाल सोटा और लाल पताका फिर कहते हैं ज़ोर से बोलो- लाल सलाम! ऐसा हम हरगिज़ नहीं होने देंगे।

तभी हनुमान फफक-फफक कर रोने लगे और पीछे से आगे आकर वहीं ज़मीन पर बैठ गए। रोते-रोते लाल सिंदूर बहने लगा था, बोले, "प्रभु! धर्म, जाति और गुट तक का मामला तो मुझे बिल्कुल नहीं सताता। लेकिन एक लेखक है पृथ्वी लोक का उसने मुझे पहला स्मगलर कहा है। प्रभु! वही मुझे सबसे ज़्यादा खटकता है। वही सबसे प्राचीन साक्ष्य भी है और आप तो पृथ्वीलोक की स्थिति जानते ही हैं कि सब कुछ कुछ सबूतों के आधार पर होता है।

"न्याय की आँख पर काली पट्टी बँधी है और स्थितियाँ ऐसी हैं कि- लड़की को जलाकर उसके घर फोन कर दिया जाता है कि तुम्हारी लड़की को आग लगा रहा हूँ और छोटी-छोटी बात पर सालों-साल केस चलते हैं। यदि मेरे ऊपर स्मगलिंग का केस लग गया तो मैं जीते-जी मर जाऊँगा, किसी को मुँह नहीं दिखा पाउँगा~। लेकिन प्रभु! दरअसल मेरी असल चिंता उससे भी बड़ी मेरे प्रभु राम जी को लेकर है। मुझे फाँसी होनी है तो हो जाए लेकिन राम जी को कुछ ना होने होने दूँगा। क्योंकि क्योंकि उन्हीं की आज्ञा से मैंने संजीवनी बूटी को एक देश से दूसरे देश सप्लाई किया था और यह, सारी मनुष्य जाति जान गयी है। वे फँसेंगे तो लक्ष्मण भी फँसेंगे और रामराज्य भी। मुझे आप फ़ौरन इस दुविधा से निकालने का प्रबंध करें। जो फ़ीस होगी मैं भरने को तैयार हूँ।

विष्णु जी ने आश्वासन दिया, "चिंता ना करें। शिव जी और ब्रह्मा जी को लेकर हम समिति का गठन करेंगे जो आप को इस समस्या से निकालने का कार्य करेगी। अभी आप निश्चिंत होकर जाएँ। बस फ़ीस का ध्यान रखना।"

तभी सभी देवियाँ एक सुर में बोल पड़ीं, "प्रभु! हमारे पतियों (इंद्र,वरुण) आदि की रक्षा करें हनुमान का क्या है रंडुआ हैं। इनका कोई नहीं इस दुनिया में, इन्हें कुछ होगा भी तो रोने वाला कोई नहीं। लेकिन हमारे पतियों की बदनामी से हमारी नाक कट जाएगी। पृथ्वी लोक पर कैसे मुँह दिखा पाएँगे।"

विष्णु जी ने यह बात सुनी तो बड़े चिंतित हुए बोले, "हाँ, हाँ इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा, बस ख़र्च ज़्यादा लगेगा।"

देवियों ने कहा, "चाहे जितना ख़र्च हो जाये। बस सृष्टि के मनुष्यों को सचेत कर दीजिये।"

आश्वासन पाकर सभी देवी-देवताओं ने अपने घरों का रास्ता लिया लेकिन हनुमान वहीं रुके गए।

हनुमान बोले, "प्रभु! मेरा फ़ैसला होगा कि मैं कौन हूँ, किस जाति का हूँ, किस धर्म का हूँ, किस गुट का हूँ; तभी मैं यहाँ से कहीं जाऊँगा नहीं तो यहीं सिर पटक-पटक कर जान गवाँ दूँगा और आपको भी ले कर मरूँगा।"

यह सुन विष्णु सन्न रह गए और सोचने लगे - यह बड़ी बला पड़ी; लेकिन वे हर एक परिस्थिति से निकलने में माहिर हैं। चाहे स्त्री रूप रखना हो या हिरण्याकश्यप का। हनुमान के कान में चुपके से बोले, "घबराओ नहीं अभी चुनाव आ रहा है! दिल पर पत्थर रख लो। किसी और को फँसाया जाएगा; बस पैसे का पूरा प्रबंध रखना न भूलना। अभी फिर से ब्रह्मा से कहकर कोई और मुद्दा छुड़वाने का प्रबंध किया जाएगा। क्योंकि आजकल पृथ्वी लोक के कर्ता-धर्ता अपने मन की बहुत सुनते हैं।"

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