सबक़
काव्य साहित्य | कविता सुनील चौधरी1 Aug 2019
थके, हारे लोगों की भीड़
जब पर्वत चढ़कर
एक जगह मिल जाती है
तो
अपने पर्वत
चढ़ने की गाथाओं से
सबक़ लेती है
और
सबक़ देती है
मैं
उस पहाड़ की चोटी से
ज़िंदगी को भी
ऐसे ही
देखने का आदी हूँ।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कहानी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं