कब तक तुझको याद करूँ
काव्य साहित्य | कविता अश्वनी कुमार 'जतन’15 Nov 2019
कब तक तेरे सपने देखूँ,
कब तक तुझको याद करूँ,
बन जा तू मेरी मूल प्रति,
और मैं तेरा अनुवाद बनूँ,
हाथ पकड़ कर एक दूजे का,
जीवन पथ पर निकल पड़ें,
खुले आसमां जैसी बन तू,
मैं भी एक सैयाद बनूँ,
एक दूजे के सुख-दुःख में,
हम दोनो भागीदार रहें,
तू रिश्ते की एक इमारत,
मैं उसकी बुनियाद बनूँ,
तेरा सब कुछ मैं हो जाऊँ,
मेरी सब कुछ बन जा तू,
तू मेरी संपत्ति हो जा,
और मैं तेरी जायदाद बनूँ,
अपनी ये ख़ामोशी हमको,
दोषी साबित ना कर दे,
तु भी ना एक मुद्दा बन जाये,
मैं भी ना अपवाद बनूँ,
अमर रहे ये प्यार हमारा,
युगों-युगों तक चर्चे हों,
यही "जतन" की एक तमन्ना,
प्यार की एक मियाद बनूँ
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
नज़्म
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Noorul Islam 2019/11/18 06:02 AM
You write with your heart and and you are an amazing poet. Well written my friend.