सपने अगर सुनहरे होंगे
शायरी | नज़्म अश्वनी कुमार 'जतन’15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
सपने अगर सुनहरे होंगे
मुमकिन है सौ पहरे होंगे
यार मेरे जो हुए लापता
रात तेरे घर ठहरे होंगे
ज़ख़्म मुझे जो मिले हैं तुमसे
ज़ाहिर है वो गहरे होंगे
अगर दर्द पे मुंसिफ़ चुप है
पता करो वो बहरे होंगे
तुमसे तन्हा मिलना होगा
महफ़िल में सब घेरे होंगे
अस्तीनों में साँप छुपे हैं
बाहर ‘जतन’ सँपेरे होंगे
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