करमहीन
काव्य साहित्य | कविता संजीव ठाकुर1 Dec 2019
लंबी–चौड़ी सड़कें
फर्राटे भरती गाड़ियाँ
तुम गाड़ियों से चिढ़ते हो?
ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएँ
ऊपर चढ़ती सीढ़ियाँ
तुम ऊँचाई से डरते हो?
तरह–तरह के मॉल
पिज़्ज़ा, बर्गर, फ़्रेंच फ़्राई
तुम पेट-दर्द से मरते हो?
तुम मानो या न मानो
लिखा था बाबा तुलसीदास ने
तुम्हारे जैसों को ही देखकर –
“सकल पदारथ यहि जग माहीं।
करमहीन नर पावत नाहीं॥”
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