मैं और तन्हाई
काव्य साहित्य | कविता कविता1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
तन्हाई मुझको भायी है,
प्रीत जो उसने निभायी है।
संग-संग हम रहा करते हैं,
सुख-दुख बाँटा करते हैं।
क्यों ढूँढ़ूँ, इस जग में
कोई साथी अपने लिए?
बहुत ख़ुश हूँ मैं
अपने-आप में मगन हूँ मैं
बस मैं हूँ और
मेरी तन्हाई है।
तन्हाई मुझको भायी है
प्रीत जो उसने निभायी है . . .
नहीं चाहिए झूठा साथ
नहीं चाहिए मतलबी प्यार
नहीं चाहिए फ़रेबी रिश्ता
बस मैं और मेरी तन्हाई
ख़ुश है दोनों साथ-साथ
तन्हाई मुझको भायी है
प्रीत जो उसने निभायी है . . .
अजब-सा अटूट
बंधन है हम दोनों का
तनहाई मेरी साथी है
सदैव संग मेरे रहती है
पल भर ना दूरी सहती है
तन्हाई मुझको भायी है
प्रीत जो उसने निभायी है . . .
हम दोनों की प्रीत अमर है
एक साँस तो दूजा धड़कन है
हम दोनों का है नाता ऐसा
एक छूटा तो दूजा टूटा
बिछड़े तो शायद जी ना पाए
तन्हाई मुझको भायी है
प्रीत जो उसने निभायी है।
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