मेरा गुलिस्ताँ!
काव्य साहित्य | कविता इन्दिरा वर्मा1 Jan 2020
यह मेरा गुलिस्ताँ है,
इसमें गूँथे हैं रंग बिरंगे -
सुनहरे कहकहे,
वही कहकहे...
जो सुबह से आकर -
शाम तक शोर मचाते हैं,
मन को बहलाते है,
प्यार से दुलराते हैं
कुछ तो मुलायम हैं,
हाथों से फिसल जाते हैं,
जैसे वे सपने -
जो रात को तो सच लगते हैं,
ख़ुशी देते हैं पल भर की ,
सुबह होते ही न जाने कहाँ,
किधर, फिरक फिरक कर भाग जाते हैं।
इस गुलिस्ताँ में मैंने स्वर्ग देखा है,
मीठी मनुहार और प्यार देखा है ,
इन्द्र धनुष के हलके गहरे रंग जो
मानस पटल पर बिखरे हैं,
बस वे बार बार अपनी थपकी देकर,
परियों का सा चुंबन देकर
बादलों में समा जाते हैं ,
यहाँ, इसी गुलिस्ताँ में!
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