ओ भारत देश महान मेरे
काव्य साहित्य | कविता विजय विक्रान्त5 Mar 2012
ओ भारत देश महान मेरे
ओ भारत देश महान मेरे
तुझे इस प्रवासी का शत प्रणाम।
लिया जन्म था तेरी धरती पर,
और बिताया वहाँ अपना बचपन,
बचपन की मधुर उन यादों को,
संजोए हुए है मेरा मन।
निस्वार्थ स्नेह की परम्परा,
अटूट प्रेम का वातावरण,
भारत तेरे मुकट में ये हीरे,
बिजली से चमकते हैं हर दम।
इस वातावरण में बड़े होकर,
शिक्षा, दीक्षा का ज्ञान मिला,
उज्जवल भविष्य की खोज में फिर,
तुझे छोड़ विदेश की राह चला।
भारतवासी प्रवासी बना,
प्रवासी बना यश ख़ूब मिला,
यश और मिले इस लालसा में,
अपने भारत को भूल गया।
यह भूल बहुत अस्थायी रही,
जब ख़ून में प्यार का जोश आया,
तेरी याद में होकर फिर व्याकुल,
जाग नींद से, जब मुझे होश आया।
होश आने पर कुछ ऐसा लगा,
जैसे गोद में तेरी हूँ मैं जा पहुँचा,
तन दूर यहाँ, मन पास तेरे,
तेरे दर्शन को मैं आ पहुँचा।
भारत तेरा गौरव ख़ूब बढ़े,
जल, थल, आकाश में हो गरजन,
उस गरजन से हम सीख यह लें
प्रवासी का मान तेरे कारण।
ओ भारत देश महान मेरे,
तुझे याद करूँ मैं सुबह और शाम,
श्रद्धा के इस गुलदस्ते से,
तुझे प्रवासी करे शत प्रणाम।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ऐतिहासिक
सिनेमा चर्चा
स्मृति लेख
सांस्कृतिक कथा
- छोटा नहीं है कोई
- कन्हैया की हाज़िर जवाबी
- जैसी तुम्हारी इच्छा
- डायरी का एक पन्ना – 001: टैक्सी ड्राईवर का एक दिन
- डायरी का एक पन्ना – 002: सर्कस का क्लाउन
- डायरी का एक पन्ना – 003: यमराज
- डायरी का पन्ना – 004: जौगर
- डायरी का पन्ना – 005: मिलावटी घी बेचने वाला
- डायरी का पन्ना – 006: पुलिस कॉन्स्टेबल
- डायरी का पन्ना – 007 : दुखी पति
- डायरी का पन्ना – 008 : मैडिकल डॉक्टर
- डायरी का पन्ना – 009 : जेबकतरा
- डायरी का पन्ना – 010 : रिमोट
ललित निबन्ध
कविता
किशोर साहित्य कहानी
लोक कथा
आप-बीती
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं