पीपल का पेड़
काव्य साहित्य | कविता शबनम शर्मा1 Jan 2020 (अंक: 147, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
सदियों पुराना, दादाओं का दादा
गाँव के उस छोर पर खड़ा
पीपल का पेड़
दिन बीते, माह बीते, बरस बीते,
दशक बीते, सदियाँ बीत गई,
इंसान पुश्त दर पुश्त गया,
पर, एक टाँग पर खड़ा,
देखता रहा बदलते युगों को,
ये पीपल का पेड़।
दुनियाँ क्या से क्या हो गई,
राजाओं के महल ढह गये,
पुरानी संस्कृति विलुप्त हो गई,
नई सभ्यता ने जन्म लिया, पर
सबको ताकता रहा पीपल का पेड़।
सदियों तक पूज्य रहा, सभ्य रहा,
बना रहा आभूषण ये पीपल का पेड़।
आज यह पूज्य नहीं, सभ्य नहीं,
चुपचाप काटा जाता है इसे
वह भी लोगों की तरह अंधा, बहरा,
गूँगा बन जाता है।
देखते हैं सिर्फ़ उसके आँसू
ये गगन, ये हवा और देते हैं
आवाज़, चुप हो जा,
समझौता कर ले।
सह लेता है असंख्य वज्र,
मूक खड़ा ये पीपल का पेड़।
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