रुक रहो प्रभु
काव्य साहित्य | कविता डॉ. रामवृक्ष सिंह1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ठीक है, बाहर खड़े यमराज।
माँ धरा पर ज़िन्दगी का राज।
उनसे कह दो, अब रुकें कुछ देर।
कब तलक रक्खेंगे अपनी टेर।
क्या किया हमने जो लेते जान
चैन से बैठो, तनिक भगवान।
कौन है जो नहीं माने बात
सब तो जाएंगे तुम्हारे साथ।
क्यों ये निर्मम क्षिप्र नर-संहार
हे प्रभु, थामो ये अपने वार।
चार काँधे भी नहीं उपलब्ध
सैकड़ों शव हैं पड़े निस्तब्ध।
काठ कम, कम पड़ रहे श्मशान
क्या करें, कुछ तो कहो भगवान।
कब थमेगी ग्रह-दशा यह वक्र?
कब रुकेगा मृत्यु का यह चक्र?
रुक रहो प्रभु, कुछ करो विश्राम।
सो रहो कुछे देर अपने धाम॥
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