ज़िन्दगी तेरी हर इक बात हसीं
शायरी | नज़्म डॉ. रामवृक्ष सिंह1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ज़िन्दगी तेरी हर इक बात हसीं
दिन हैं सोने के तो हर रात हसीं
तू न जाना झटक के हाथ मेरा
तोड़ उल्फ़त के ये जज़्बात हसीं।
तेरी ख़ातिर मरा हूँ जी-जीकर
क़तर-ए-ख़ून-ए-जिगर पी-पीकर।
इस तरह कैसे चली जाएगी
छोड़कर सारी कायनात हसीं।
आ कि हर ख़्वाब की ताबीर करें
इक नयी सुब्ह की तामीर करें
आ तेरी माँग में सजा दूँ मैं
चाँद-तारों की ये सौग़ात हसीं।
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