श्री कृष्ण जन्माष्टमी
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
जब थी रात काली अंधियारी
तब जन्मे थे कृष्ण मुरारी।
खुलीं बेड़ियाँ मात-पिता की
जब जन्मे थे नर अवतारी।
वसुदेव देवकी धन्य हो गए
जीवन में थीं खुशियाँ आई।
पापी कंस का इस धरती से
अंत करन की बारी आई।
कारागार के खुल गए ताले
सो गए थे सारे दरबारी।
कान्हा ने गोकुल जाने की
कर ली थी पूरी तैयारी।
छायी चारों ओर घटाएँ
मूसलाधार हुई बरसातें।
यमुना का जल धीरे-धीरे
अपना क़द थे सतत बढ़ाते।
वसुदेव कान्हा को सिर पे थामे
बढ़ते जल में हिम्मत ना हारे।
शेषनाग थे बन गए छाता
बन कर के उनके रखवारे।
पहुँचे गोकुल में जब कान्हा
सबको निद्रा में थे पाए।
लिटा कृष्ण को यशोदा के संग
उठा बेटी उनकी ले आए।
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