गुहार
काव्य साहित्य | कविता निलेश जोशी 'विनायका'15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
हे चंद्रचूड़ , हे भूतनाथ, हे मृग छाल धारी।
हे गंगधार, हे महाकाल, हे सर्प माल धारी।
कर उद्धार,
जन गये सिधार,
बन गए शिकार भारी।
है गुहार,
जन-जन को तार,
है महामार भारी।
बेबस विकास,
धन का निकास,
हुआ बहुत भारी।
अपने हैं पास,
पर नहीं प्रकाश,
समय बड़ा भारी।
हे महादेव, हे उमापति, हे जटा जूट धारी।
हे भस्म धार, हे नीलकंठ, हे कालकूट धारी।
रुक गई है चाल,
सरकार बेहाल,
हो रहे बवाल भारी।
हैं कई सवाल,
ये क्यों है धमाल,
हो कोई कमाल भारी।
मजदूर प्रवास,
हाय बंद आवास,
उड़े होश हवास भारी।
मरी है भूख,
प्यास गई सूख,
न कोई प्रयास भारी।
हे अमरनाथ, हे मृत्युंजयी, हे त्रिनेत्र धारी।
हे काम अरि, हे आशुतोष, हे शूल तीन धारी।
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