वृद्धजनों का कौन सहारा?
काव्य साहित्य | कविता अनिल मिश्रा ’प्रहरी’1 Feb 2020 (अंक: 149, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
भूल स्वयं को जिसने पाला
दिया दुग्ध का भर-भर प्याला,
तुझ पर कोई आँच न आये
जाग-जाग ख़ुद तुझे सुलाये।
वही आज है भूखा - हारा
वृद्धजनों का कौन सहारा?
तेरी शिक्षा को बेचा घर
माँ भी ख़ुश ज़ेवर गिरवी धर,
संतति बने बड़ा यह चाहत
हो भविष्य न उसका आहत।
तुमने उनको ही दुत्कारा
वृद्धजनों का कौन सहारा?
दे उनको ममता की चादर
रख उर में श्रद्धा, दे आदर,
कलुष, कलह की जड़ें हिला दो
घर में रोटी उन्हें खिला दो।
यही पुण्य जीवन का सारा
वृद्धजनों का कौन सहारा?
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