ज़िंदगी के किसी एक मोड़ पर
काव्य साहित्य | कविता सनी गंगवार 'गुरु'1 Oct 2020
ज़िंदगी के किसी एक मोड़ पर
मिली थी तुम मुझे
मेरी दोस्त बन के
चल दिया हाथ पकड़ के
अपना साथी मान के
दोनों एक मंज़िल की राह पर
क्या पता था मुझे
तू किन राहों पर लाएगी मुझे
समझ न पाया मैं तुझको
समझ न पायी तू मुझको
जो न मंज़ूर था मुझको
वही मंज़ूर था तुझको
जो लिया था तूने फ़ैसला
टूट सा मैं गया
फिर तूने साथ न दिया
किसी और ने हाथ थाम लिया
हुआ इश्क़ आज फिर हमको
न समझ नादान थी वो
चला फिर मैं अपनी मंज़िल को
तेरा हाथ छोड़ के
न समझ पाया मैं तुझको
न समझ पायी तू मुझको
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