आईने की व्यथा
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’15 Oct 2024 (अंक: 263, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
एक बार सभी आइने अपनी उपेक्षा से दुखी होकर मृत्यु लोक से विदा लेकर स्वर्ग लोक में चले गए! वहाँ सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी को अपनी व्यथा सुनाने लगे। उन सबकी लबर-झबर से उकता कर ब्रह्मा जी ने उनमें से एक प्रतिनिधि चुनने को कहा। सभी आइनों ने मिलकर आईनेश्वर दर्पण दास को प्रतिनिधि बनाकर ब्रह्मा जी के चैम्बर में भेजा! दर्पण दास जी अपने मलीन धूल धूसरित मुख से धूल हटाते हुए बोले, “हे ब्रह्म देव, हमारी रक्षा करो, मृत्यु लोक में हमारी दुर्दशा हो गई है। एक समय था जब लोग हमारे सामने सजते-सँवरते थे। प्रेम में पड़ी सुकोमलाएँ घंटों हमारे सामने खड़े होकर अपने साजन-मिलन की पवन बेला को बला की ख़ूबसूरती प्रदान करने के लिए सजतीं-सँवरतीं थीं, पिया मिलन के गीत गाती थीं। विरहनें हमें अपना साथी मानती थीं, अपनी विरह की पीड़ा हमसे साझा करती थीं और हम उनके आँसुओं की तकलीफ़ समझते थे।
“यही नहीं प्रभो . . . लोग गाड़ियों के साइड मिरर में भी देखते थे कि आगे कौन है और पीछे कौन है। लोग एक दूसरे का मान रखते थे। सब लोग अपना आईना ख़ुद ही देखते थे, लोग एक दूसरे को आईना दिखाते नहीं थे। हमारे ऊपर स्वार्थ और संवेदनहीनता की परतें चढ़ा दी गई हैं। सब परतें चढ़ाने में लगे हैं, कोई परतें हटाने वाला नहीं है। अब लोगों ने हमें देखना ही बंद कर दिया है। कहते हैं, “हम झूठे हो गए, ‘हमारी हालत इवीऐम से भी बदतर हो गयी है,’ लोग चेहरे ख़ुद झूठे लगाते हैं और हमें ब्लेम करते हैं! अरे इतने चेहरे बदल लेते हैं लोग इतने तो नेता दल भी नहीं बदलते, प्रेमिका प्रेमियों को भी नहीं बदलतीं! सिर्फ़ चेहरा ही नहीं चेहरे के रंग भी इतनी जल्दी बदलते हैं, इतनी जल्दी तो गिरगिट भी रंग नहीं बदलता।
“हे चौमुखी चिंतक! . . . संविदा में लगे किसी कर्मचारी की तरह सिर्फ़ हम पर दोष मढ़ा जाता है, कोई पार्टी किसी दूसरी पार्टी को आईना दिखाती है, तो पार्टी कहती है, ‘इसने ये आईना ख़रीद लिया है, ये आईना इसका भक्त हो गया, इसी की बोलता है।’ आइने पर झूठ बोलने का इल्ज़ाम! सच में इतनी बदनामी हमारे हिस्से आ रही है। लोगों ने अपने बेडरूम, बाथरूम, कार, सभी जगह से हमें हटा दिया है। धूल-मिट्टी जो हम पर जमी है बस उसे ही साफ़ करते रहते हैं, कभी ख़ुद की आत्मा और शरीर दोनों पर जमी धूल-मिट्टी नहीं हटाते।
“हे ‘चिंता-प्रवक्ता’ ब्रह्मा जी! मोबाइल वालों ने भी हमारा रोज़गार छीन लिया। अब देखो, ऐसे-ऐसे फ़िल्टर लगा रखे हैं जो बूढ़े आदमी को 16 साल का जवान बना दें। लोग इस फ़िल्टर के सहारे अपनी ठरकपन की प्यास शांत कर रहे हैं, फ़ेसबुक पर अपने को जवान बताकर 16 साल की लड़की से इश्क़ फ़रमा रहे हैं।”
ब्रह्मा जी उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे। तभी ब्रह्मा जी ने एक प्रस्ताव रखा, “क्यों न तुम्हारा अपग्रेडेशन कर दिया जाए। देखो इस उत्तर आधुनिक काल में जहाँ तकनीक पल-पल बदलती रहती है वहाँ तुम्हारा ये चेहरा दिखाने का काम अब अप्रासंगिक हो गया है। अब तो कृत्रिम बुद्धिमता के ज़माने में लोग इस प्रकार से चहरे पर चेहरा लगा लेते हैं कि एग्ज़ामिनर धोखा खा जाये। लोग अपना असली चेहरा तो बहुत पहले छोड़ चुके हैं, अब तो बस नक़ली चेहरों का सहारा ले रहे हैं, वो भी देशकाल परिस्थिति के अनुसार उपलब्ध हैं! लोग वो ही देखना चाहते हैं जो उन्हें देखना है, या जो वो नहीं हैं वो भी देखना चाहते हैं। तुम बिल्कुल बूढ़े माँ-बाप की तरह अपने ‘बाय डिफ़ॉल्ट मोड’ में उन्हें असली चेहरा दिखाना चाहते हो, अब वो कहाँ ये बरदाश्त करेंगे। ऐसा करो तुम बजाय उन्हें चेहरा दिखाने के उनका चरित्र दिखाना शुरू करो। लोग कितनी भी कोशिश करें—अपना चेहरा तो बदल सकते हैं लेकिन चरित्र नहीं बदल सकते! शायद तुम्हारा ये नया अपडेटेड फ़ीचर उन्हें पसंद आए।”
प्रतिनिधि दर्पण सिंह को बात जँची लेकिन उन्होंने आईना संघ के समक्ष ये बात रखी। सभी ने एक साथ हामी भर दी। बस फिर क्या था, ब्रह्मा जी ने अपने आईटी विभाग को ये ज़िम्मा सौंप दिया। आईने अपने नए फ़ीचर के साथ मृत्यु लोक में लॉन्च हो गए। लोगों ने धड़ल्ले से आइनों को ख़रीदना शुरू किया। सभी जानने को उत्सुक थे कि ये अपडेटेड वर्जन वाले आइनों में ऐसा क्या ख़ास है। सभी में होड़ लगी, एडवांस बुकिंग शुरू हो गई। कई लोगों ने अपनी पहुँच का इस्तेमाल कर, और कुछ ने ब्लैक के एक्स्ट्रा भुगतान में भी आइने ख़रीदे। सभी ने अपने बेडरूम, ड्राइंग रूम, वाशरूम, जहाँ भी जगह मिली वहाँ आईने लगा दिए।
लेकिन ये क्या, जैसे ही नए आइने लगे, ब्रेकिंग न्यूज़ की बाढ़ आ गई। एक ख़बर आई कि एक पति और पत्नी में तलाक़ हो गया, पति जैसे ही पत्नी के सामने आया, पति के ‘एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर’ की परत आईने ने खोल दी। फ़ाइल कोर्ट में गयी और तलाक़ की अर्ज़ी दर्ज हो गई। नेता, अफ़सर, अधिकारी, वकील सभी को अपना असली चरित्र दिखने लगा तो सभी विभागों में खलबली मच गई। लोगों के चरित्र का ऐसा बाज़ारीकरण हुआ कि जो काम ‘आरटीआई’ क़ानून नहीं कर पाया वो काम आईने ने एक झटके में कर दिया। घोटाले, रिश्वतख़ोरी, लूटपाट, डकैती, बलात्कार, अपहरण, फिरौती के मामलों के नए-नए ख़ुलासे की ख़बरों से अख़बार भर गए! सभी जगह ‘मी टू’, ‘मी टू’ की आवाज़ आने लगी . . . सोशल मीडिया में हाहाकार मच उठा। इधर जनता को भी रोज़ाना नए-नए घोटालेबाजों का पता लगा तो चारों तरफ़, ‘अच्छा ये भी, अच्छा ये भी’ की आवाज़ आने लगी! मामला संसद तक पहुँचा। इस मामले में देखा गया कि संसद के पक्ष-विपक्ष सभी सदस्य एकजुट होकर इन नए फ़ीचर वाले आइने का विरोध करने लगे। संविधान में क़ानून पारित हुआ कि कोई भी इस नए फ़ीचर वाले आईने को घर में लगाते पाया गया तो उस पर दंड का प्रावधान रहेगा।
आईना अपनी बेबसी पर सिसक रहा है। ‘आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे’! वाली स्थिति हो गयी, ब्रह्मा जी ऊपर इस नज़ारे को देख कर मुस्कुरा रहे हैं, कुछ कह भी रहे हैं, “चौबे जी चले थे छब्बे जी बनने, दुब्बे जी भी नहीं रहे।”
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