मुझे भी इतिहास बनाना है
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
इतिहास, वह विषय जो समय की धूल में अपनी गौरवगाथाएँ समेटे रहता है, पर पता नहीं क्यों, कभी इतिहास ने मुझे इस पर गर्व करने का मौक़ा नहीं दिया। मैं यहाँ अपने निजी इतिहास की बात कर रहा हूँ, आप शायद इसे ग़लत समझ रहे होंगे। मेरे देश का इतिहास तो वास्तव में स्वर्णिम अक्षरों में मेरे हृदय पटल पर विराजमान है। यहाँ समस्या यह है कि भले ही देश और विश्व का इतिहास मेरे हृदय पटल पर अंकित हो, मुझे इस पर गर्व भी होता है, जब भी देश के इतिहास का नाम सुनता हूँ मेरे रोम-रोम में बसे हुए रोंगटे भी खड़े हो जाते हैं, लेकिन यह इतिहास हमेशा मेरे हृदय पटल पर ही रहा, कभी मेरे मस्तिष्क पटल पर नहीं घुस पाया।
या यूँ कहें की शायद बचपन में ही किसी प्रेरक वक़्ता ने मुझे ज्ञान की घुट्टी पिला दी थी, की इतिहास पढ़ना नहीं है बेटा, इतिहास बनाना है, इतिहास गढ़ना है!
बस तभी से इतिहास बनाए में लगा हूँ, इस से पहले की ख़ुद इतिहास हो जाऊँ!
स्कूल के समय से ही, जब इतिहास की पुस्तक मेरे बैग में घुसी, वह मेरी पत्नी की अलमारी में पड़ी साड़ियों की तरह कभी-कभार ही बाहर निकली। और जब भी बाहर निकली, मैं इसके पहले पन्ने को देखकर ही इतना मंत्रमुग्ध हो जाता कि नज़रें वहीं अटक जातीं है, दूसरा पन्ना पलटने का मौक़ा ही नहीं मिलता। हमारे इतिहास के मास्टर, जिन्हें हम मारसाहब भी कहते थे क्योंकि वो मारते बहुत थे, इतिहास को रटाने में कसर नहीं छोड़ते। ख़ुद चूँकि पास के एक गाँव से ही आते थे, उनके बहुत बड़े खेत थे। खेत में रबी और ख़रीफ़ दोनों ही फ़सलों की पैदावार होती, कुआँ भी था, कुएँ में इंजन भी था। घरवाले उनकी मास्टरी की टुची सी नौकरी से ज़्यादा प्रभावित नहीं थे और पूरी रात उन्हें उनके पुश्तैनी काम-धंधे यानी कि खेतों में कूड मोड़ने के काम में लगाए रखते (कूड मोड़ने का मतलाब खेतों में पानी देना, जहाँ क्यारियों में पानी के बहाव को बदल कर हर क्यारी में पानी पहुँचना होता है) . . . बेचारे मार साहब कूड-मोड़ते जाते, और अपने ख़ुद का इतिहास ताक पर रख देते, और दिन में स्कूल आते वक़्त ‘उनीणदे’ से क्लास में घुसते।
बच्चों को इतिहास के किसी मुग़ल ख़ानदान के बिगड़ैल नबाब का चैप्टर खोलने के लिए कहते, एक बच्चे को किताब के साथ खड़ा कर देते जिसकी आवाज़ गाँव में होने वाले कीर्तनों में गा-गाकर काफ़ी ऊँची हो गई थी। उसे इतिहास दोहराने के लिए कहा जाता और सारे बच्चे कोरस में उस इतिहास को दोहराते। इस तरह किसी न किसी मुग़लाई नबाब की क़ब्र रोज़ खोदी जाती। और मा मार साहब ख़ुद कुर्सी में धम्म से बैठकर नींद के आग़ोश में डूब जाते। इतिहास के चल रहे पाठ में बीच-बीच में अपनी खर्राटों से हुंकार भरते रहते ताकि बच्चों को पता रहे की मारसाहब अभी क्लास में ही हैं, दिवंगत नहीं हुए हैं। वेब ब्राउज़र में दिन भर का पढ़ा हुआ सारा इतिहास डिलीट कर देता हूँ। क्या करें, घर में बीवी-बच्चे हैं, उन्हें पता चले कि दिन भर में इस वेब जाल ने मुझे क्या-क्या परोसा है। पता नहीं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी अपने तरीक़े से सोचने लगी है। इसे कैसे पता चल जाता है कि मुझे पड़ोस की आंटी पसंद आ गई। वो ऐसे ही बड़े लुभावने से आंटी जैसे सुपर ऑफ़र मेरे डेस्कटॉप पर उड़ेल देता है। उसे पता लग गया है मुझे लोन की ज़रूरत है तो उसके पास लुभावनी ईएमआई के क्रेडिट कार्ड के ऑफ़र हैं। वो मुझे घुमाना भी चाहता है तो मुझे बैंगकॉक, थाईलैंड ऐसी जगह घुमाना चाहता है, जिसके नाम भी परिवार में पता लग जाए तो भूचाल आ जाये। अब दोस्तों के साथ बैठे बातचीत करें तो वो भी इन्हीं जगहों का सुझाव देते हैं, मन में उत्सुकता तो रहती है आख़िर क्या है ये बवाल, ये दोस्त जो किसी न किसी प्रोडक्ट की एजेंसी लिए हुए है और कंपनियाँ भी जानती हैं कहाँ इनके ठरकीपन की आग बुझ सकती है इसलिए इन्हें ऐसी जगह ही ले जाया जाता है। एक बार ऐसे ही जब उनके नमक-मिर्ची के चटखारे लगा कर विदेश भ्रमण की दास्तानें किसी मीटिंग में सुनायी गयीं, तो हमने एक दिन उत्सुकतावश इस धार्मिक कंट्री का नाम गूगल पर टाइप ही कर दिया तो फिर गूगल बाबा बहुत भावुक हो गया, और फिर महीनों तक मुझे बैंगकॉक थाईलैंड के लुभावने ऑफ़र दिखाता रहा, गूगल बाबा सुनता किसी की नहीं है लेकिन सब को अपनी ज़रूर सुनाता है, बिलकुल बीबी की तरह!
अब ये तब तकनीक के हैज़र्ड हैं झेलने ही पड़ेंगे। सब कुछ तो है ना, मुझे लुभाने के लिए। लगता है जैसे कंप्यूटर नहीं हुआ, मेरी दूसरी बीवी हो गई जो मेरे हर मूड का विशेष ख़्याल रखती है। ख़ैर, कंप्यूटर के इस अति उत्साहित सेवाभावी कार्य से मेरा परिवार तो शायद ख़ुश नहीं होगा, इसलिए मैं उस इतिहास को मिटाना ही चाहता हूँ। स्कूल में तो इतिहास के पेपर को जैसे-तैसे नक़ल प्रक्रिया से पार कर लेते। फर्रे, जो कि हमारे इतिहास की डूबती नैया को पार कराने के लिए छात्रों और शिक्षकों की मिलीभगत से एक सामुदायिक सहयोग की भावना से आदान-प्रदान होते रहती थे।
वर्तमान समय में, हर कोई नया इतिहास रचने में लगा है। रिकॉर्ड तोड़ने में लगा है, विभिन्न संस्थाएँ ऐसे कामों में जुटी हैं, जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुए। जैसे धार्मिक रैली में हर बार कलशों की संख्या उच्चतम स्तर पर, महाआरती में दीपकों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर, सरकार भी इतिहास बना रही है, घोटालों का इतिहास, घोटालों में डकारी गयी रक़म का इतिहास, बलात्कारी, भ्रष्ट नेता, बिज़नेसमैन अपने अपने स्तर पर, अपनी कौशल और प्रतिभा के दायरे में की गयी कारस्तानियों की गंध फैलाकर इतिहास पर इतिहास बनाए जा रहे है। आदमी तो आदमी, धरती चाँद-सितारे, जल-वायु सब इसी होड़ में लगे हैं। सूरज ने गर्मी के तेवर दिखने का नया इतिहास बनाया है, धरती ने भूकंप की तबाही के रिकॉर्ड तोड़े हैं। आकाश ने बाढ़ की तबाही के, जल ने अपने आपको इतना नीचे गिरा लिया है की पातळ लोक तक चला गया। कोई प्राचीन इतिहास से संतुष्ट नहीं हैं और इसे बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। यहाँ तक कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी कई लोगों को पसंद नहीं आ रहा है, और वे इसमें परिवर्तन लाने की दिशा में सक्रिय हैं। पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में इतिहास को अपने-अपने तरीक़े से लिखा जा रहा है, जिससे एक नई परंपरा की नींव रखी जा रही है। सब जगह इतिहास से छेड़-छाड़, मसलन इतिहास नहीं हुआ, महल्ले की सविता भाभी हो गयी, हर कोई इसे छेड़ना चाहता है।
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