आज भी शाम हो गई
काव्य साहित्य | कविता पवन शाक्य21 Oct 2007
रोज की तरह आज भी शाम हो गई,
जिन्दगी जैसे बेवफ़ा हो गई,
कोशिश तो बहुत की कि चैन आ जाये,
मगर दिल से नई दुश्मनी हो गयी।
दिन भर अपनों से मिले परायों से मिले,
हाल उनके दिलों का कुछ पता भी न चले,
कैसे कहूँ उनसे क्या बात हो गई,
ये मौत भी अब तो बेवफ़ा हो गई।
बात मरने की नहीं अरे हमसफर,
दिल कायर कभी भी नहीं था मगर,
मौत मुझको इतनी प्यारी हो गयी,
जैसे मरना मेरी हर खुशी हो गयी,
रोज की तरह आज भी शाम हो गई।
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