कैसे मैं दिल को दिलासा दिलाऊँ?
काव्य साहित्य | कविता पवन शाक्य21 Oct 2007
उठती हिलोरें हैं दीवाने दिल में,
कहतीं हैं कैसे मैं मंजिल को पाऊँ?
मुरझा गई जो बहारें दिलों की,
कैसे मैं उनकी ये प्यासें बुझाऊँ ?
उधर उनके दिल में है सावन की मस्ती,
मगर अपनी हालत किसे मैं सुनाऊँ?
ये दुनियाँ प्रकृति की अनोखी कहानी,
कहीं शिमला कुल्लू मनाली को पाऊँ।
मगर दिल है मेरा ये थार मरुस्थल,
इसकी ये प्यासें कहाँ से मिटाऊँ?
बगीचों मैं बिखरी है खुशबू जहाँ की,
खेतों में फैली है रौनक वहाँ की।
मगर अपने दिल में मैं घुसकर के देखूँ,
तो ऐसी वीरानी कहीं भी ना पाऊँ।
गैरों के दिल को मिलाते रहे हम,
उन्हीं की खुशी में हँसते हँसाते रहे हम।
ऐसा मिला ना कोई भी जहां में,
जिसको मैं अपनी कहानी सुनाऊँ।
कोयल जो बोले तो दिल मेरा डोले,
ऐसा दीवाना हुआ है मेरा मन।
सुन लूँ अगर मैं किसी की हँसी,
तो कैसे मैं दिल को दिलासा दिलाऊँ?
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