आज ज़िन्दगी को फिर से ढूँढ़ते हैं
काव्य साहित्य | कविता डॉ. शिल्पा तिवारी15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
चलो हँसने की कोई वजह ढूँढ़ते हैं,
जिधर ना हो कोई ग़म ऐसी जगह ढूँढ़ते हैं।
बहुत भटक लिए ज़िन्दगी के दौड़ में,
कहीं सुकून से बैठने की जगह ढूँढ़ते हैं।
मतलबी लोगों के बीच,
कोई साथ चलने वाला हमसफ़र ढूँढ़ते हैं।
अनजान सी गलियों में कहीं,
मंज़िल को पाने का रास्ता ढूँढ़ते हैं।
दूर हुए दोस्तों के साथ,
मुलाक़ात करने की वजह ढूँढ़ते हैं।
किसी अनजान की मदद कर,
उसके मुस्कुराने की वजह ढूँढ़ते हैं।
बहुत उड़ लिए आसमान में,
चलो कहीं ज़मीन पर सतह ढूँढ़ते हैं।
रात के अँधेरों में,
चांद की रोशनी ढूँढ़ते हैं।
जीने की कश्मकश में,
ख़ुशियों की लहर ढूँढ़ते है।
वीडियो कॉल के ज़माने में,
अपने से मिलने की कोई वजह ढूँढ़ते हैं।
ऑनलाइन खाना मँगा के खाने के चलन में,
कभी ख़ुद बनाने का मौक़ा ढूँढ़ते हैं।
ख़ुद की ख़्वाहिश को पीछे रख,
कभी माँ-बाप की ख़ुशियों की वजह ढूँढ़ते हैं।
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