आख़िरी बुज़ुर्ग
काव्य साहित्य | कविता डॉ. कविता भट्ट1 Mar 2020 (अंक: 151, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
आज हो रहा गाँव की
नवनिर्मित रोड का उद्घाटन
वहाँ अकेले रह रहा आख़िरी बुज़ुर्ग
गाँव छोड़ रहा है
अनमना होकर
किन्तु समाप्त नहीं होता
हरे- भरे वृक्ष-खेतों का मोह
मटके का पानी,
मिट्टी की सौंधी महक
ठण्डी हवाएँ, फूलों की महक
नहीं है ख़ुश, गहरे दुःख में है
फिर भी जा रहा है दूर शहर
बहू-बेटे के साथ की ख़ातिर।
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