आत्महत्या के विरुद्ध
काव्य साहित्य | कविता मंजुल सिंह15 May 2021 (अंक: 181, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
सूरज अपनी रोशनी समेट रहा था,
चाँद आसमान को फाड़ कर बाहर निकल रहा था
आसमान पहले से भी ज़्यादा गहराता जा रहा था
धुँध बेवज़ह घरों से निकल कर भाग रही थी
कुत्ते आज भौंकने की जगह दहाड़ रहे थे
वो दफ़्तर से निकला आदमी
नींद की गोली की जगह
चूहे मारने की दवा
यह कह कर ख़रीद रहा था
कि पत्नी आजकल
चूहों से ज़्यादा परेशान रहती है!
औरत दिमाग़ और ज़ुबान पर ताला लगाकर
हाथों को काम पर गिरवी रख चुकी थी!
बच्चे पता नहीं क्यों आज
कॉपी के सबसे आख़िरी पन्ने पर
पापा को मम्मी को पीटते हुए का
चित्र बना रहे थे?
बच्चे सुबह स्कूल जाने की बजाय रो रहे थे,
घर के बाहर सफ़ेद रंग का शामियाना तन चुका था
वह दफ़्तर वाला आदमी कह रहा था
मैं रात को जल्दी सो गया था
और वो महीने के आख़िरी
का कैलेंडर बदल रही थी!
और डॉक्टर की रिपोर्ट बोल रही थी कि
नींद की गोली की जगह
चूहे मारने की दवाई खाई है
इस औरत ने!
लेकिन वो तो,
आत्महत्या के विरुद्ध थी?
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