रंडी
काव्य साहित्य | कविता मंजुल सिंह1 Jun 2021 (अंक: 182, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ईश्वर ने तुम्हें
प्रकृति की नज़र से
बचाने के लिए
दिया ठोड़ी पर काले
तिल का डिठौना,
और दो काली आँखें
तुम्हारे प्रेमी ने
समाज की नज़र से
तुम्हे बचाने के लिए
दी काली गाली-
रंडी थी साली
रंडी चौराहे पर लगी
कोई साफ़ सुथरी मूरत नहीं
और न ही
किसी कोठे पर लेटी
तुम्हारे फ़ारिग़ होने के इंतज़ार में,
रंडी कोई भी हो सकती है
रंडी तुम्हारी माँ भी हो सकती है
तुम्हारे बाप की गाली में
तुम्हारी बहन भी रंडी हो सकती है
प्रेमी के साथ बिस्तर में होने के बाद
जैसे तुम्हारी प्रेमिका हो गयी थी
तुम्हारे साथ के बाद
रंडी तुम्हारी पत्नी भी हो सकती है
एक दिन खाने में नमक ज़्यादा होने पर
रंडी तुम्हारी बेटी भी हो सकती है?
जैसे सारी रंडियाँ होती आयी हैं।
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