ऐसा पहली बार नहीं हुआ था
काव्य साहित्य | कविता दीपक पाटीदार17 Dec 2015
कई बार देखा था उन्होंने पंचांग
फिर भी मन में
एक संशय रह ही गया था
आख़िरकार
एक अच्छे मुहूर्त को देख
वे चलने को निकले ही थे कि
फड़फड़ा दिए थे कान
एक कुत्ते ने राह में
और वे खड़े रह गए थे वहीं
ऐसा पहली बार नहीं हुआ था
कि अपने मन के डर को उन्होंने
किया था बयां
किसी बेज़ुबां पर
कई बार बिल्लियाँ
उनका रास्ता काट चुकी थीं।
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