अँधेरा होते ही
काव्य साहित्य | कविता पूनम कुमारी15 Sep 2023 (अंक: 237, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
अँधेरा होते ही
यह दुनिया
हो जाती है क़ैद
अपने-अपने घरों में
तब
निकलते हैं
काले-काले चमगादड़
अपने-अपने घरों से
इस
अंधकारभरी दुनिया का
मुआयना करने को
रहती है सीमित
उनकी भाषा
उन्हीं तक
जैसे सीमित रहती है
धूप
दोपहर तक
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