अंधकार
काव्य साहित्य | कविता अमित कुमार सिंह5 May 2006
गगनचुम्बी इमारतें,
चारों तरफ़ जगमग
प्रकाश है।
पर मन के भीतर
तुम देखो मानव
कितना अंधकार है।
दिन की रोशनी हो
चाहे हो सूर्य का
प्रकाश,
मन के दीप
जबतक न जले
ये सब है अंधकार।
प्रजज्वलित कर
दीप अन्तर्मन का
कलुषित विचार,
को त्यागो,
मन ज्योति से
रोशन कर
संसार से अंधकार
तुम मिटा दो।
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