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अंकों के लिए नहीं, ज्ञान के लिए पढ़ना है

 

आधुनिक युग में ज़्यादातर बच्चे और अभिभावक चाहते हैं कि उनके सबसे ज़्यादा 99 या 100% अंक आएँ। आख़िरकार क्यों दी जा रही है सिर्फ़ और सिर्फ़ अंकों को इतनी अहमियत? 

अगर हम प्राचीन समय की बात करें तो शिक्षा सिर्फ़ और सिर्फ़ ज्ञान अर्जित करने का ज़रिया थी। गुरुकुल में रहकर और सुख सुविधाओं को छोड़कर शिक्षा ग्रहण की जाती थी। उस समय तो कोई अंक नहीं दिए जाते थे। आप हमारे महान पुरुषों को देख लो या फिर भगवान श्री कृष्ण जी व श्री राम जी ने शिक्षा कैसे प्राप्त की थी? अपनी बुद्धि, विवेक से बिना अंकों के हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बने और अर्जुन जैसे योद्धाओं ने इसी पावन धरा पर जन्म लिया। 

क्या उस समय अंकों को अहमियत दी जाती थी? 

कदापि नहीं बल्कि क़ाबिलियत पर ज़ोर दिया जाता था। 

मैं एक बात आपको बता रही हूँ कि बीते वर्ष मेरा बेटा बोर्ड की परीक्षा में 90 प्रतिशत अंकों से पास  हुआ। हम बहुत ख़ुश थे पर मेरी कई दोस्तों ने फोन करके मुझे बोला ‘अगर थोड़े से नंबर और आ जाते तो अच्छा होता।’ 

उन्होंने फोन पर मुझे बताया—देखना हमारे बच्चे तो 98 या 99 ही लाएँगे। मैं उनकी बात सुन हैरान हो गई मैंने एक से पूछा, “आप बताओ आपके कितने नम्बर आए थे बोर्ड की परीक्षा में।” मेरी इन बातों से उसे बुरा लगा। पर हम तो इन नंबरों में बहुत ख़ुश थे और हमने सैलीब्रेट भी किया। 

मुझे ज़्यादातर ने यही बोला ‘अरे कम से कम 95 प्रतिशत तो आने चाहिए थे’। बल्कि मैंने और मेरे पति ने अपने बच्चों को हमेशा यह बोला है कि आपको अपने पाठ्यक्रम की पूरी जानकारी होनी चाहिए। 

अब कई लोग यह भी बोलते हैं कि ज्ञान होगा तो नंबर अवश्य आ जाएँगे; परन्तु कई बार हालात ऐसे बनते हैं कि बच्चा जैसा पढ़ा होता है वैसा लिख नहीं पाता। मैं आपके सामने कुछ उदाहरण पेश कर रही हूँ और इसके कारण भी हमारे आसपास ही हैं। 

जैसे, कई बार बच्चा परीक्षा के समय मानसिक रूप से बीमार व शारीरिक रूप से बीमार हो जाता है। उसका असर परीक्षा पर तो अवश्य पड़ेगा पर इसका मतलब यह नहीं, बच्चा पढ़ा ही नहीं। परीक्षा के समय बच्चों का तनाव चरम पर होता है। ख़ासकर बोर्ड की परीक्षा में। इस परीक्षा को भी दूसरी परीक्षाओं की तरह क्यों नहीं माना जाता? 

बोर्ड की परीक्षा मानकर अपने दिमाग़ पर ज़ोर नहीं डालना चाहिए। बोर्ड की परीक्षा भी दूसरी परीक्षाओं की तरह सामान्य परीक्षा ही होती हैं। 

बच्चों को सारा पाठ्यक्रम याद होता भी है तो घरवालों के दबाव के कारण बच्चे मानसिक रूप से तनाव में आ जाते हैं। जिसका सीधा असर उनकी परीक्षा पर पड़ता है। 

कई दफ़ा बच्चों का डर इस क़द्र बढ़ जाता है कि बच्चा परीक्षा के कुछ समय चुप-चुप रहने लगता है। हम सोचते हैं कि मौसम की वजह से बच्चा बीमार है। हम उसकी असली वजह जानने की कोशिश ही नहीं करते। कई दफ़ा बच्चा बताता है तो हम हँस कर टाल देते हैं और हम बोलते हैं कि तूने शायद अच्छे से पढ़ाई नहीं की इसलिए ऐसा बोल रहा है। 

ज़्यादातर के साथ अक़्सर यही होता है कि जब भी बच्चों की परीक्षा होती है, परिवार में धार्मिक आयोजन या फिर शादी-विवाह जैसा कोई प्रोग्राम हो जाता है जिससे कि बच्चे की पढ़ाई पर बहुत असर होता है। 

उस समय अभिभावक क्या करते हैं? बच्चे को एक कमरे में बंद कर देते हैं और बोलते हैं कि तू सिर्फ़ पढ़ाई करेगा और तू किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा। 

कोई रिश्तेदार शामिल भी करना चाहे तो आप मना कर देते हैं। भले ही बच्चों का मन कर रहा हो कार्यक्रम मैं जाने का, परन्तु आपके डर से मना कर देता है। 

अगर आप समय निर्धारित कर दें तो दोनों काम आसानी से कर सकते हैं बच्चों का तनाव भी कम हो जाएगा और पढ़ाई पर भी असर नहीं पड़ेगा। 

आप बताएँ घर में आयोजन हो रहा है। हँसी-मज़ाक़ चल रहा है। पार्टी चल रही है। गाने चल रहे हैं। पकवान बन रहे हैं। आपको क्या लगता है? ऐसे माहौल में बच्चा पढ़ पाएगा? कदापि नहीं, उसका सारा ध्यान आपकी तरफ़ ही रहेगा। 

घर के माहौल से डिस्टर्ब होता रहेगा अगर समझदारी से बच्चों को कुछ समय रिश्तेदारों के साथ मौज-मस्ती करने को मिल जाए तो इसमें क्या बुराई है? बच्चे से बात करें, उसे बताएँ कि आप दो घंटे तक मस्ती कर सकते हो। बच्चों को भी मस्ती और पढ़ाई करने का भी समय मिल जाएगा व बच्चा ख़ुश भी होगा। 

साथ में घर वालों को भी बताएँ की मौज-मस्ती करने का समय सीमित रहेगा। आपका बच्चा दोनों काम आसानी से व बिना तनाव के कर लेगा। 

पढ़ाई के साथ-साथ आपके प्यार-प्रेम की भी बहुत आवश्यकता होती है। बच्चे से प्यार करें अगर आप दुखी होंगे और तनाव लेंगे तो बच्चे पर भी इसका असर पड़ेगा। पर अगर आप ख़ुश हैं आसानी से बच्चे को परीक्षा के तनाव वाले माहौल से दूर रख पाएँगे। बच्चा प्रसन्न रहेगा और अपना सारा ज़ोर पढ़ाई पर लगा देगा। 

अहम बात— बच्चे के खाने-पीने का विशेष ध्यान आपको ही रखना है। वैसे तो पूरे वर्ष खाने-पीने का ध्यान रखना होता है पर परीक्षा के वक़्त विशेष ध्यान रखें। ख़ासकर बाहर के खाने से बच्चों को बचा के रखना चाहिए। अगर आप ज़्यादा बाहर का खाना या जंक फ़ूड खाते हैं तो उसका सीधा असर बच्चों की सेहत पर पड़ता है और बच्चे को बीमार होते देर नहीं लगती। उसे घर का बना शुद्ध व पौष्टिक भोजन दें। 

ज़्यादातर घरों में देखा गया है कि परीक्षा जैसे ही आती है तो बच्चे का बाहर निकलना बिल्कुल बंद कर देते हैं। ऐसा क्यों करते हैं आप? अगर पूरा दिन घर में रहेगा तो उसे शुद्ध हवा कहाँ से मिलेगी और तनाव कैसे कम होगा? बल्कि बच्चे के साथ थोड़ी देर आप भी बाहर जाएँ उससे बात करें। उसका दिमाग़ शांत तभी होगा जब आपका साथ होगा। जब बाहर घूम कर बच्चा घर आएगा तो तरोताज़ा महसूस करेगा। एक-दो घंटे में कोई पढ़ाई का नुक़सान नहीं होता। 

कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चा परीक्षा से दो-तीन दिन पहले नया याद करने की कोशिश करता है। परन्तु ऐसा बिल्कुल ना करें। उसी का ही रिवीजन करें जो आपने याद किया था। नया याद करने के चक्कर में आप तनाव ले सकते हैं जिसका असर, जो आपने याद किया था, उस पर पड़ेगा। परीक्षा के समय सिर्फ़ रिवीजन करें। परीक्षा से ठीक 2 महीने पहले सिर्फ़ और सिर्फ़ रिवीजन करने को ही समय दें। 

बच्चे हड़बड़ी में जल्दबाज़ी में याद करने की कोशिश कदापि न करें। धीरे-धीरे सब याद करने की कोशिश करें। आपको पता भी नहीं लगेगा कब आपका कोर्स पूरा हो गया। 

हमेशा याद रखें! परीक्षा सब कुछ नहीं है। 

हमने अक़्सर देखा कि अच्छे नंबर लाने वाला नौकरी में पिछड़ जाता है। 

परीक्षाएँ आपका भविष्य तय नहीं करती। 

परीक्षा का ज़्यादा तनाव मानसिक रूप से बीमार कर देता है और बच्चे आत्महत्या जैसा अपराध कर देते हैं। 

हमारे समाज को और ख़ासकर अभिभावकों को ऐसा माहौल बनाना होगा कि बच्चे परीक्षा का तनाव न लें। 

उन्हें बताएँ जो दिनचर्या पूरे वर्ष रहती है वैसी ही परीक्षा के समय भी अपनी दिनचर्या रखें। 

परीक्षाएँ आपका भविष्य नहीं हैं। आने वाला समय, हालात और आगे की मेहनत आपको बताएगी कि आपका भविष्य कैसा होगा। आगे की मेहनत आपको जीवन के नए आयाम सिखाएगी। 

दसवीं में फ़ेल, 12वीं में कम अंक आने के बाद भी हमने बड़े-बड़े पदों पर सफल लोगों को देखा है। ऐसा सिर्फ़ और सिर्फ़ मेहनत और लगन के कारण हुआ है यह सब। वे अपने कम नंबर आने पर दुखी नहीं हुए बल्कि नंबरों को देखकर और ज़्यादा मेहनत की और उसका नतीजा यह हुआ कि भविष्य में ज़्यादा मेहनत की, जिसका फल उन्हें मिला। 

ये बात हमेशा याद रखें—परीक्षा आपका जीवन नहीं है। अंक आपको परिभाषित नहीं कर सकते। आपकी क़ाबिलियत तय करेगी कि आप आने वाले समय में एक सफल व्यक्ति होंगे। इन डिग्रियों को कोई देखता भी नहीं है। आप हो तो सब मुमकिन है। 

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