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अधिक संवेदनशीलता बन सकती है अभिशाप

पुरुषों के बारे में यह कहा जाता है कि वे मन की बात मन में ही रखते हैं, इसलिए लंबे समय के बाद इसका असर उनकी तबीयत पर पड़ता है। जबकि महिलाओं के लिए यह कहा जाता है कि उनके स्वभाव और अधिक सोचने की वजह से इसका असर उनकी तबीयत पर पड़ता है। ख़ास कर जीवनशैली के रोग जैसे कि डायबीटीज, ब्लडप्रेशर, एसिडिटी आदि की व्यापकता महिलाओं के अंदर उनके ओवर सेंसटिव के कारण ही बढ़ती है। ‘लोग मेरे लिए क्या सोचते हैं, यह भी मैं सोचूँगी तो लोग क्या सोचेंगे।’ यह वाक्य पढ़ कर हम मन ही मन शाबाशी अवश्य देंगे, पर जब इसे सच में अनुसरण करने की बात आती है तो हम हमेशा पीछे हो जाते हैं। जबकि इसमें मिला-जुला प्रतिभाव है। अक़्सर महिलाएँ इस मामले में इतना बिंदास हो जाती हैं कि कोई नज़दीकी भी उन्हें सलाह देता है तो भी वे उसकी अवहेलना करती हैं और कभी-कभी वे जिसे पहचानती भी नहीं, इस तरह का भी आदमी उनकी सुंदरता पर कमेंट कर देता है तो इस बात को लेकर वे अपना मूड ख़राब कर लेती हैं। कुछ महिलाएँ तो ऐसी भी होती हैं, जो किसी दूसरी महिला की नज़र देख कर ही मूड ख़राब कर लेती हैं। वह मेरी ओर कुछ अलग ही नज़र से देख रही है। निश्चित मैंने जो कपड़े पहने हैं, वे अच्छे नहीं लग रहे हैं। अरे, जो आप को पहचानता नहीं है, वह आप की ओर देख कर क्या सोच रहा है, यह सोच कर मूड ख़राब करने की क्या ज़रूरत है? महिलाओं में यह गुण पैदायशी होता है। वे किसी को एक नज़र देख कर परख लेने की क्षमता रखती हैं। पर यह क्षमता उन्हें ख़ुद को दुख पहुँचाए, यह ग़लत बात है। सच बात तो यह है कि बहुत ज़्यादा लापरवाही और बहुत ज़्यादा परवाह के बीच तालमेंल बैठाना बहुत ज़रूरी है। मतलब कि बहुत ज़्यादा अल्हड़ता में जैसे अतिशयोक्ति नहीं अच्छी होती, उसी तरह बहुत ज़्यादा लगनशील या संवेदना होने में अतिरेक होना अच्छा नहीं है। आप का बहुत ज़्यादा संवेदनहीन होना भी आप को पीड़ा दे सकता है। अब इसमें सोशल मीडिया का समावेश हो गया है, इसमें डाले जाने वाले फोटो में कितनी लाइक आई, कितनी नहीं आई से लेकर कितने लोगों ने स्टोरी देखी, इस बात की छटपटाहट मन में रहती है।

ज़्यादा अल्हड़पन भी बेकार

जिस तरह ओवर सेंसटिविटी समस्या साबित होती है, उसी तरह ज़्यादा अल्हड़पन भी बेकार है। अक़्सर ऐसा होता है कि आप का एकदम नज़दीकी व्यक्ति आप को किसी मामले में रोक-टोक करता है तो हम उसकी बात सुनने से मना कर देते हैं। यहाँ बात यह है कि किसी भी मामले में जिस तरह अधिक चिंता करना नुक़्सानदायक है, उसी तरह किसी बहुत नज़दीकी ने आप के अच्छे लिए कुछ कहा है तब एटिट्यूड दिखाने के बजाय उसकी बात मान लेना ही उचित है। हमारा नज़दीकी व्यक्ति कभी-कभी हमारे बारे में वह देख लेता है, जो हम देख पाते हैं। अगर कोई कुएँ में गिरने से बचने के लिए अच्छी सलाह दे रहा है तो अल्हड़पन दिखाना एकदम मूर्खता कही जाएगी, इसीलिए हर बात को बैलेंस में रख कर चलना चाहिए। जीवन में सफल होना है, हमेशा शान्ति का अनुभव करना है तो हर मामले में अतिशयोक्ति करने से बचना चाहिए, क्योंकि अति कहीं भी अच्छी नहीं है, इसलिए समझ-बूझकर चलना चाहिए।

अति ज़हर के समान

यहाँ एक सामान्य उदाहरण देने का मन हो रहा है। पति-पत्नी किसी संबंधी के यहाँ मिलने गए। बात चली तो पति ने मज़ाक़ में कहा कि मैडम को किचन में अभी भी समस्या होती है। यह बात दोनों के लिए एकदम काॅमन थी, दोनों जानते थे कि पत्नी का रसोई में ख़ास हाथ जमा नहीं है। इस बारे में पति कभी मज़ाक़ में कुछ कह देता तो इसे वह दिमाग़ पर न लेती। पर उस दिन घर आ कर इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा हुआ। पत्नी ने कहा कि तुम ने जिस जगह मेरे किचन के काम को ले कर शिकायत की, वह उचित जगह नहीं थी। अब यह बात दूसरी चार जगहों पर होगी और अपना वह संबंधी लोगों से मेरी बदनामी करेगा। पति ने बहुत कहा कि इससे क्या फ़र्क़ पड़ेगा, कोई कुछ कहेगा तो कह देना कि दूसरे काम तो बढ़िया से आते हैं, मुझे खाना बनाना नहीं आता तो मेरे घर वालों को कोई समस्या नहीं है। फिर मैंने यह बात मज़ाक़ में कही थी, बाक़ी मैं जानता हूँ कि तुम अपने हर काम में कितनी पॉवरफ़ुल हो। पति की बात पत्नी समझती थी, पर पत्नी की समस्या यह थी कि अब उसे उसकी ससुराल में ही लोग जज करेंगे। ख़ैर, यही ओवर सेंसटिविटी की निशानी है। आप किसी बात में थोड़ा कमज़ोर हैं और यह बात आप के दैनिक जीवन में कोई समस्या नहीं खड़ी करती और इस बात पर कोई टिप्पणी करता है तो? क्या आप इन बातों को इग्नोर नहीं कर सकतीं? महिलाओं में यह बात अधिक देखने को मिलती है कि बाहर से तो एकदम बेफ़िक्र दिखाई देने की बात करती हैं, पर अगर उन पर कोई टिप्पणी कर देता है तो तुरंत चिंता हो जाती है। तमाम मामलों में महिलाएँ दूसरा क्या सोचेगा, यह सोच कर वे बेकार की चिंता करती हैं। इस तरह की तमाम बातें सोचने पर अनेक शारीरिक और मानसिक समस्याएँ खड़ी होती हैं। इसलिए बहुत ज़्यादा सोचने-विचारने और चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि आप क्या हैं, इस बारे में तो आप के बहुत क़रीबी लोगों के अलावा और कोई पूरी तरह से नहीं जान सकता। बाक़ी लोग तो दूर से आप के विचारों के अनुसार ही जज करेंगे। इस तरह के जजमेंट की बहुत ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि जो आप को पहचानते होंगे, वे आप के बारे में कभी बुरा नहीं सोचेंगे और जो आप को अच्छी तरह नहीं जानते, वे आप के बारे में कुछ भी कहें, क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है। हाँ, अगर कोई आप के मुँह पर कहे तो उसे सच्चाई ज़रूर बताएँ, बाक़ी जो चीज़ आपने अपने कानों से नहीं सुनी, उस बारे में बहुत ज़्यादा और लंबे समय तक चिंता कर के बीमारियों को निमंत्रण देना ही है।
 

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