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बच्चों में बढ़ती ऑनलाइन शॉपिंग की आदत, कैसे कंट्रोल करें

बच्चों की ऑनलाइन शॉपिंग की आदत बड़ों का बजट बिगाड़ देती है। अगर माँ-बाप बच्चों की छोटी उम्र से ही बचत की आदत डालते हुए पालें-पोसें तो आगे चल कर उनकी ज़िन्दगी आसान बन जाएगी। 

“पूर्वी, तुम ने फिर से शॉपिंग की? मेरे एकाउंट से दो हज़ार रुपए कट गए हैं,” मोना ने बेटी से पूछा। 

पूर्वी अभी भी फोन में शॉपिंग साइट्स सर्च कर रही थी। फोन में ही आँखें गड़ाए हुए उसने कहा, “हाँ माॅम, कल की है, दो टीशर्ट ख़रीदी हैं। एक बेल्ट फ़्री मिली है। और हाँ, एक जींस आज ली है। केवल 999 की।”

“अरे, पर तुम्हें पूछना तो चाहिए। मुझे आज लाइट बिल भरना है। अब कुछ मत ख़रीदना ऑनलाइन, खाते में थोड़े ही रुपए हैं। कॉलेज की फ़ीस भी तो भरनी है। अभी फ़िल्म देखने या घूमने न जाओ तो ठीक रहेगा। जब तक कोरोना का नुक़्सान न पूरा हो जाए, ज़्यादा पैसे मत ख़र्च करो। पैसा बचाना सीखो बेटा। देखो न, लाइट बिल ही तीन हज़ार रुपए आया है। जिस तरह एसी चलाती हो, उस तरह कोई एसी चलाता है। इंटरनेट का भी ख़र्च थोड़ा कम करो। एक तो साग-सब्ज़ी कितनी महँगी हो गई है। भगवान न करे ऐसे में किसी की तबीयत ख़राब हो गई तो अस्पताल का ख़र्च फ़ाइवस्टार होटल की तरह आता है। इसीलिए तो हमारे बड़े-बुजुर्ग कहते थे, ‘जितनी चादर हो, उतना ही पैर फैलाओ’।”  

मोना ने पूर्वी को अपनी बात समझाने की बहुत कोशिश की कि उनकी बात बेटी के गले उतर जाए, पर पूर्वी की पिन तो मोबाइल की ऑनलाइन आकर्षक शॉपिंग पर ही चिपकी थी। 

“अब इस बात में चादर कहाँ से आ गई? लेनी है क्या? देखो, यह काॅटन की चादर कितनी अच्छी है। ऑर्डर कर दूँ? कलर कितना सुपर है।”

“न, नहीं चाहिए। वैसे भी फोटो में बहुत अच्छी लग रही है। पर आने पर रंग कुछ और ही निकलता है।”

“तो वापस कर देंगे।”

“पर बिना ज़रूरत के कोई भी चीज़ ख़रीदने की ज़रूरत ही क्या है? इस तरह रोज़-रोज़ ख़रीदारी करने से तो ख़ज़ाना ही लुट जाएगा।”

“मम्मी एक काम कीजिए। पापा से कह कर मुझे क्रेडिट कार्ड दिला दीजिए। आप को बैलेंस देखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।” 

पूर्वी अपनी बात कह रही थी कि तभी उसके पापा रजनीश आ गए। उन्होंने कहा, “बोलो . . . बोलो, मेरी राजकुमारी को क्या चाहिए?” 

“क्रेडिट कार्ड चाहिए पापा। मम्मी अपने एकाउंट से ख़र्च ही नहीं करने देतीं। मम्मी बहुत कंजूस है न पापा। मुझे क्रेडिट कार्ड दिला दीजिए। मैं ज़्यादा शॉपिंग नहीं करूँगी। केवल कपड़ा और शूज़ बस?” 

पूर्वी को पता था कि उसकी मीठी-मीठी बातों में पापा आ ही जाएँगे। इसलिए उनके नज़दीक जा कर प्यार से मस्का लगाने लगी। 

“पर पूर्वी मैं तुम्हें समझा रही हूँ कि बिना ज़रूरत के शॉपिंग नहीं करनी है,” मोना चिल्लाई। 

“करेगी . . . मेरी बेटी करेगी। मोना एक ही तो बेटी है। इसके तो शौक़ पूरे करने देना चाहिए न?” रजनीश ने बेटी का पक्ष लेते हुए कहा। 

मोना ने कहा, “अगर यह अभी से बचत करना नहीं सीखेगी तो पछताएगी। तुम ही इसे समझाओ। अलमारी भरी है। पैसा कमाने के लिए हम दोनों कितनी मेहनत करते हैं।”

“ठीक है। पर सब इसी के लिए तो है। बेटा, तुम्हारा क्रेडिट कार्ड कल बनवा देता हूँ।”

“यस्स! अब तो मज़ा ही मज़ा। मम्मी, आप तो देखती ही रह गई। अब तो मैं ख़ूब शॉपिंग करूँगी,” कहते हुए पूर्वी ख़ुशी के मारे घर से बाहर निकल गई। 

एक महीने बाद रजनीश ने देखा कि क्रेडिट कार्ड से पूर्वी ने दस हज़ार की शॉपिंग की थी। मोना ने कहा, “इस तरह तो इस लड़की की शॉपिंग की लत लग जाएगी।”

अब क्रेडिट कार्ड वापस लेना भी आसान नहीं था। क्रेडिट कार्ड वापस लेने पर पूर्वी को बुरा लग गया और उसने कोई ग़लत क़दम उठा लिया तो? एकलौती बेटी को नाराज़ करना उचित नहीं था। इसलिए उन्होंने कोई दूसरा उपाय अपनाने के बारे में सोचा। 

रजनीश और मोना ने मिल कर एक व्यवस्थित प्लान बनाया। उन्होंने पूर्वी को बुलाया। पहले तो उसके द्वारा की गई शॉपिंग को देखा। तारीफ़ भी की। फिर एक-दो चीज़ के लिए पूछा भी, “यह तो अपने पास थी न? यह टाॅप महँगा नहीं लग रहा?” 

पर पूर्वी इस तरह उत्साह में थी कि उसे ज़रा भी पछतावा नहीं हुआ। यह देख कर रजनीश ने कहा, “अगले महीने से हम तुम्हें एक ऑफ़र देने के बारे में सोच रहे हैं। मैं तुम्हारे खाते में पाँच हज़ार रुपए जमा कराऊँगा।”

“बस, पाँच हज़ार?” पूर्वी तुरंत बोल पड़ी। इसलिए मोना ने कहा, “यहाँ ऐसे तमाम लोग हैं, जिनका इतना वेतन भी नहीं है बेटा। ऐसा मत बोलो, पाँच हज़ार में तो पूरे महीने का राशन आ जाता है।”

रजनीश ने कहा, “अरे सुनो तो सही, मैं तुम्हें पाँच हज़ार दूँगा, इसमें से जितना तुम बचाओगी, उतना अगले महीने अधिक दूँगा। समझ लीजिए कि तुम ने चार हज़ार ख़र्च किए तो अगले महीने छह हज़ार मिलेंगे।”

“और बिलकुल न ख़र्च करूँ तो दस हज़ार?” 

“हाँ, पर हर महीने तुम्हारी ख़र्च की लिमिट पाँच हज़ार ही रहेगी। बाक़ी की बचत तुम्हारे खाते में जमा रहेगी। साल के अंत में उसमें से तुम्हारी पसंद की कोई चीज़ दिला देंगे।”

“मोबाइल या फिर लैपटॉप?” 

“कोई भी चीज़ जो तुम्हें पसंद होगी।”
“ओके डन!” पूर्वी को यह अच्छा लगा। अगले महीने से स्कीम चालू हो गई। पूर्वी ने दो हज़ार बचाए। राज ने उस महीने हज़ार रुपए दिए। पूर्वी का उत्साह बढ़ता गया। उसकी बचत करने की आदत बनती गई और ख़र्च अपने आप घटता गया। 

आजकल ऑनलाइन शॉपिंग की आदत बड़ों-बड़ों का बजट बिगाड़ देती है। अगर सभी किसी न किसी तरह बचत का विकल्प अपनाएँ तो ख़र्च अपने आप घट जाएगा। और अगर ऑनलाइन शॉपिंग की आदत बढ़ती ही जाए तो ख़ुद ही कार्ड जमा करा दें तो अच्छा रहेगा। पहले माँ-बाप ख़ुद ही अपना फ़ालतू का ख़र्च कम करें और बच्चों में कम उम्र से ही बचत की आदत डालें, जिससे उनकी ज़िन्दगी आसान बन जाए। 

स्नेहा सिंह

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