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नई पीढ़ी के लिए विवाह में फ़्लेक्सिबल बनना ज़रूरी है

 

‘विवाह’ यह हमेशा से चुनौतीपूर्ण सम्बन्ध रहा है। दो परिचित या अपरिचित लोगों को हमेशा एक-दूसरे के साथ जीना, बैंक बैलेंस से लेकर बेड तक शेयर करना या पसंद-नापसंद को स्वीकार करना, यह सरल बातें पहले भी नहीं थीं और आज भी नहीं हैं। पर पहले सहिष्णुता और समाधान के गुण दोनों के बीच रहते थे, इसलिए विवाह टिके रहते थे। जो है, उसी में ख़ुशी खोजने की आदत सम्बन्धों को जोड़े रखती थी। जुड़े हुए सभी सम्बन्ध श्रेष्ठ थे या होते हैं, यह ज़रूरी नहीं है, परन्तु पहले महिलाओं को अपने विवाह को बनाए रखना अति महत्त्वपूर्ण होता था। इसलिए बहुत कुछ अनदेखा किया जाता था। आज की पीढ़ी में विवाह को टिकाए रखने के लिए महिला और पुरुष दोनों का बराबर प्रयास होना ज़रूरी है। मात्र प्रयास ही नहीं हक़, सम्मान, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और फ़र्ज़ सब बराबर होना चाहिए। इसलिए कुछ ऐसी बातें हैं, जो इनके लिए ज़रूरी हैं। 

सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच आधी समस्या को हल कर देती है और उत्साह को दोगुना कर देती है। शिकागो यूनिवर्सिटी में किए गए एक शोध के अनुसार जो पति-पत्नी सकारात्मक अभिगम्य होते हैं, उनके बीच संघर्ष की सम्भावना न के बराबर होती है। पति-पत्नी एक-दूसरे के जीवन में घटने वाली घटनाएँ कैसा प्रभाव पैदा करती हैं इसका असर सम्बन्धों पर पड़ता है। इसलिए पति-पत्नी एक-दूसरे की वाणी-व्यवहार की क़द्र करते हैं। इन्हें प्रोत्साहन दें और गर्व अनुभव (प्राउड फ़ील) करें तो यह सम्बन्धों की सुगंध लंबे समय तक बनी रहती है। ग़लती या ग़लत व्यवहार के लिए सीधे लाइफ़ पार्टनर को ज़िम्मेदार ठहराने के बजाय 'अमुक संयोगों में ऐसा हो जाता है, इट्स ओके, जब जागो तभी सवेरा या ग़लती किससे नहीं होती? ' यह कह कर सकारात्मक रूप से ट्रीट किया जाए तो सम्बन्धों का बाग़ प्यार और विश्वास से महक़ उठेगा। 

अभिव्यक्ति ज़रूरी

कमज़ोर अभिव्यक्ति और कम बातचीत धीरे-धीरे सम्बन्धों का प्रेम रस चूस लेती है। बिना कहे जीवनसाथी आप की सारी बातें समझ जाए, यह सम्भव नहीं है। इसलिए आप क्या चाहते हैं या चाहती हैं, यह कहना ज़रूरी है। मन की बात मन में रखने से नासमझी बढ़ती है। इसलिए दिल की हर बात साझा करें, साझा करने से, एक दूसरे को समझने से और प्रेम और आदर आएगा। सम्बन्ध में अगर ये सब बातें हों तो दूसरा कुछ क्या चाहिए? सम्बन्ध टूटने के डर से चुप रहने से शायद सम्बन्ध टूटे तो न, पर खोखले तो हो ही जाएँगे। 

दोस्त बनें

पति-पत्नी को दोस्त बनना हो तो निखालिसता, विश्वास और सहायक प्रवृत्ति का होना पड़ेगा। जिस तरह दो दोस्त एक दूसरे के सामने बिना किसी दंभ या आवरण के व्यक्त होते हैं, आँख मूँद कर भरोसा करते हैं, अपना नुक़्सान कर के भी परस्पर समर्थन करते हैं, कोई बात बुरी भी लगती है तो भूल कर आगे बढ़ते हैं, एक-दूसरे का मज़ाक़ उड़ाते हैं तो नाराज़गी भी झेलते हैं। बस, यही बातें पति-पत्नी शुरूआत से ही आचरण में उतार लें तो ‘दो जिगर एक जान’ जैसी इंटिमसी अवश्य आएगी। ‘दोस्ती’ बहुत कुछ चलाना, स्वीकारना और भूलना सिखाती है। 

घर के काम में सहयोग

पत्नी कामकाजी नारी हो तो संवेदनशील पति घर के कामों में पत्नी की मदद करता है। छोटे-मोटे कामों में पत्नी की सहायता पति के प्रति सम्मान पैदा करती है। पति पत्नी की परवाह करता है, चिंता करता है, उसके काम में सहभागी होना चाहता है, यह सोच कर पत्नी के प्यार में पंख फूटते हैं और प्यार दोगुना हो जाता है। पति द्वारा की जाने वाली पत्नी की क़द्र किस पत्नी को अच्छी नहीं लगेगी? क्योंकि अब कमाना मात्र पति की ही ज़िम्मेदारी नहीं है, उसी तरह घर के कामों की भी ज़िम्मेदारी अब केवल पत्नी की नहीं है। 

अदृश्य अंतर खड़े करने वाले परिबलों से सावधानी

आज टेक्नॉलोजी मनुष्य का दूसरा मित्र है। मोबाइल पर गेम्स, सोशल मीडिया पर चैटिंग, टी.वी., वीडियो, फोन पर लंबी-लंबी बातें, मित्रों का जीवन में ज़्यादा से ज़्यादा महत्त्व और सम्बन्धियों की दख़लंदाज़ी आदि ऐसे मामले हैं, जो अंतरंग समय और संवाद के मौक़ों और रोमांस के पलों को कम करते हैं। जिससे सम्बन्ध बिना सुगंध वाले फूल जैसे हो जाते हैं और धीरे-धीरे मुरझा जाते हैं। यहाँ लड़ाई-झगड़ा नहीं होता, किसी तरह का संघर्ष नहीं होता, पर प्यार भी नहीं होता, जिससे उदासीनता-उपेक्षा का एक माहौल बनता है। इससे बचने के लिए इस तरह के अदृश्य परिबलों को जीवन में शुरू में ही आने से रोकें। इन्हें जानों-पहचानों और दूर से विदा कर दो। 

समय दें

विवाह के शुरूआत में एक-दूसरे से अलग न होने वाले कुछ ही दिनों में एक-दूसरे से भागने लगते हैं। पर यह भागना पलायनवाद है। इससे सम्बन्ध सुधरने के बजाय बिगड़ते हैं। तर्क-वितर्क हो या झगड़ा, घुटन हो या थके हों, काम अधिक हो या टेंशन हो। किसी भी स्थिति में एक घंटा तो साथ गुजारें ही। साथ रहने से प्यार बढ़ता है और संघर्ष घटता है। अगर जीवनसाथी के साथ समय गुज़ारने के बजाय किसी अन्य काम में मन लगने लगे तो चेत जाना चाहिए। साथ रहने से लगाव बना रहता है। वरना नज़र से दूर, दिल से दूर होने में समय नहीं लगता। 

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