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माता-पिता दर्पण हैं, जिसमें बच्चे ज़िन्दगी का प्रतिबिंब देखते हैं

 

स्कूराल्फ वाल्डो नामक चिंतक ने कहा है कि आप का व्यक्तित्व इतनी तेज़ आवाज़ में बोलता है कि आप के कहे शब्द सुने नहीं जा सकते। माता-पिता जब बच्चे से अच्छे व्यवहार और अच्छे काम की अपेक्षा करता है तब यह बात नज़रअंदाज़ नहीं होनी चाहिए। आचार ही प्रचार का श्रेष्ठ साधन है। आचार का असर धर्मग्रंथों के उपदेशों की अपेक्षा भी बढ़ जाता है। 

एक अफ़सर अपने बच्चों को गोल्फ़ के मैदान में गोल्फ़ खेलने के लिए ले गया। उसने टिकट काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा, “अंदर जाने की टिकट कितने की है?” 

वहाँ बैठे व्यक्ति ने जवाब दिया, “6 साल से ज़्यादा उम्र वालों के लिए 3 डॉलर और उससे कम उम्र वालों के लिए कोई टिकट नहीं है।”

अफ़सर ने कहा, “छोटे की उम्र 3 साल है और बड़े की उम्र 7 साल है। इसलिए मुझे तुम्हें 6 डॉलर देने होंगे।”

टिकट काउंटर पर बैठे युवक ने कहा, “आप की लॉटरी लगी है क्या? आप 3 डॉलर बचा सकते थे। आप मुझसे कह सकते थे कि बड़ा बेटा 6 साल का है। मुझे पता तो था नहीं।”

अफ़सर ने जवाब दिया, “मुझे पता है कि तुम्हें नहीं पता। पर बच्चों को तो पता चल जाता कि उनका पिता झूठ बोल रहा है। मेरे बच्चे मुझे झूठ बोलते सुनेंगे तो वे भी झूठ बोलने में नहीं हिचकेंगे।” आज के चुनौती भरे इस समय में नैतिकता पहले की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों के सामने अच्छा उदाहरण पेश करना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों के व्यक्तित्व में अच्छी बातें चाहते हैं तो यही नियम अपनाएँ। 

ट्रेन में एक मम्मी और बच्चा यात्रा कर रहा था। 8-10 साल का बच्चा और उसकी मम्मी, दोनों किताबें पढ़ रहे थे। बग़ल में बैठे किसी व्यक्ति ने पूछा, “आज जब हर बच्चा मोबाइल का दीवाना है तो आप का बच्चा पुस्तक पढ़ रहा है, हैरानी की बात है?” 

मम्मी ने हँस कर कहा, “बच्चा हम जो कहते हैं वह नहीं, जो देखता है उसका अनुसरण करता है।” बच्चे को अच्छा आदमी बनाने के लिए इन बातों का ध्यान रखें। 

बच्चे की उपस्थिति में झूठ न बोलें

हम छोटी-छोटी बातों में झूठ बोलते रहते हैं, इसलिए बच्चा मान लेता है कि झूठ बोलना ख़राब चीज़ नहीं है। अगर आप को किसी वजह से झूठ बोलना ही पड़े तो बच्चे के सामने दिलगिरी व्यक्त करें कि मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था, ऐसा बोल कर मैंने ग़लत किया है। ‘रियली, आई एम सॉरी’। बच्चे को यह भी समझाएँ कि हमारे आसपास अनेक लोग झूठ बोलते रहते हैं, ‘बट इट्स नाट फ़ेयर . . . मैं और मम्मी सच बोलते हैं, इसलिए मेरा बेटा भी सच बोलेगा’। 

मोबाइल से बचें

आज माता-पिता मोबाइल के लिए बच्चों पर ग़ुस्सा करते हैं। आज की पीढ़ी का मोबाइल के बिना चलता ही नहीं है। क्या यह बात उचित है? अगर माता-पिता चाहते हैं कि बच्चा हमेशा मोबाइल में व्यस्त रहने के बजाय कुछ रचनात्मक करे तो इसके लिए पहले माता-पिता को सुबह उठ कर मोबाइल में डूब जाना छोड़ना होगा। अगर सुबह समय है तो बच्चे के साथ घूमने जाएँ, प्रार्थना करें और अगर सभी फ़्री हों तो कार्ड्स वग़ैरह गेम खेलें। क्रिकेट या बैडमिंटन खेलने जाएँ। म्यूज़िक सुनें या पुस्तक पढ़ें। आप सोशल मीडिया में डूबे नहीं रहेंगे तो बच्चे पर आप की बात का असर होगा। पापा-मम्मी ऐसा करते हैं या नहीं करते हैं, इसी के आधार पर उचित-अनुचित की धारणा बनती है। माता-पिता का व्यवहार संतुलित होना अनिवार्य है। 

भाषा पर नियन्त्रण 

माता-पिता की भाषा का बच्चे पर सब से अधिक असर होता है। उनका शब्द भंडार माता-पिता द्वारा विकसित होता है। इसलिए आप बच्चे के सामने कैसे शब्द, कैसी भाषा और बोलते समय कैसी टोन का उपयोग करते हैं, इसका ध्यान रखना चाहिए। साला, गधा, बदमाश, बिना अक़्ल का, पागल, बेवुक़ूफ़, नालायक़ या हरामी जैसे शब्द माता-पिता को किसी के भी लिए बोलते सुन बच्चा ख़ुद भी बिना समझे ये शब्द बोलने लगता है। सार्वजनिक रूप से बच्चा ये शब्द बोलता है तो माता-पिता चिल्लाते हैं कि मैंने तुम्हें यही संस्कार दिए हैं? बच्चा संस्कार उपदेश से नहीं, आचरण से ग्रहण करता है। जब तक बच्चे में दुनियादारी की समझ न आए, तब तक वह अपने माता-पिता के ही व्यवहार को सही मानता है और जब बच्चे में समझ आ जाती है, तब तक बच्चे के व्यक्तित्व में अनेक ग़लत बातें समा जाती हैं। 

राजनीति 

संयुक्त परिवार हो या विभक्त, ज़्यादातर अभिभावक किसी न किसी मुद्दे पर राजनीति खेलते रहते हैं। बच्चे की तेज़ नज़र में यह सब आता है। पर ठीक से विवेक-बुद्धि विकसित न होने से या निर्दोषता होने के कारण ये आप के मन को समझ नहीं सकते और मन में लोगों के लिए ग़लत अभिप्राय बना लेते हैं और फिर वैसा ही व्यवहार करते हैं। इसलिए अपनी गंदी राजनीति की छाया बच्चों पर न पड़ने दें। वरना भविष्य में वही राजनीति वे आप के साथ करेंगे। अगर अच्छी संतान चाहते हैं तो अच्छा बनना ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। 

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