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अपने बच्चे की मोबाइल की लत के लिए कहीं आप तो ज़िम्मेदार नहीं

 

‘तन्वी बेटा शरारत मत करो।’ दिव्या ने चिल्ला कर चार साल की बेटी से कहा। तन्वी घर में इधर से उधर दौड़-भाग कर रही थी और बार-बार हेलो-हेलो बुला रही थी। दिव्या अपने काम में व्यस्त थी। तन्वी दो बार रसोई में आ कर कह गई कि “मम्मा चलो थोड़ी देर मेरे साथ खेलो, मुझे गार्डन ले चलो।” तन्वी के कहने पर दिव्या का मन तो हुआ, पर रसोई का काम अभी बाक़ी था। अब वह रसोई का काम छोड़ कर बेटी को घुमाने ले जाती तो स्वाभाविक है कि सभी खाए बग़ैर ही रह जाते। इसीलिए तन्वी शरारत कर रही थी। बेटी शरारत न करे, इसके लिए दिव्या ने उसे मोबाइल थमा दिया। दस सेकेंड पहले घर में जो शोर-शराबा कर रही थी, हैलो कह रही थी, वह एकदम शांत हो गई। तन्वी एकदम चुप हो कर सोफ़ा पर लेटे-लेटे मोबाइल देखने लगी। ऐसा अक़्सर बार-बार होने लगा। तन्वी शरारत करती, कहीं बाहर चलने की ज़िद करती अथवा कहीं बाहर जाने पर शरारत करती तो उसे मोबाइल दे दिया जाता। इस वजह से धीरे-धीरे तन्वी की मोबाइल की लत पड़ गई। अब वह जानबूझकर शरारत करने लगी, जिससे मम्मी उसे मोबाइल दे दें। हम जितना समझते हैं, आज के युग के बच्चे उससे कहीं अधिक स्मार्ट हो गए हैं। वह बातें कैसी भी करें, पर माँ-बाप के व्यवहार को परखते हैं। जिस तरह कोई बच्चा शरारत करने के बाद माँ-बाप की डाँट न सुननी पड़े, इसलिए रोने लगता है अथवा बिना वजह दुलराने लगता है, जिससे मम्मी या पापा पिघल कर उन पर खीझें न। एकदम छोटी उम्र में ही बच्चे समझने लगते हैं कि अगर वह ऐसा करेंगे तो मम्मी-पापा हँसने लगेंगे और उन्हें डाँटेंगे नहीं। 

ख़ैर, दूसरी ओर आरव का अलग ही मामला था। आरव के पेरंट्स अक़्सर रात को बेडरूम में मोबाइल ले कर उसमें कुछ देखते रहते थे। तब आरव अकेला खेलने के बजाय मम्मी-पापा को ध्यान खींचने के लिए कुछ न कुछ ऐसा नख़रा करता, जिससे वे मोबाइल एक ओर रख कर उसकी ओर ध्यान दें। अगर रात को उसके मम्मी या पापा फोन पर किसी से बात कर रहे होते तो आरव ज़ोर-ज़ोर से गाना गाने लगता, चिल्लाने लगता अथवा शरारत करने लगता। पूरे दिन मम्मी-पापा साथ न हों और रात को मिलें तो उस पर ध्यान देने के बजाय मोबाइल पर सर्फ़िंग में लग जाते तो आरव बवाल कर देता। पूरे दिन माँ-बाप से अलग रह कर रात को तो अपने पेरंट्स का साथ चाहिए ही, इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है। आरव ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रहा है, इसकी जानकरी होते ही उसके पेरंट्स ने अपने बेडरूम को ‘नो सोशल मीडिया और नो मोबाइल ज़ोन’ बना दिया। 

आप को देख कर ही बच्चे सीखते हैं

अभी जल्दी ही प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने परीक्षा की चर्चा पर एक बात कही थी कि ‘बच्चों के लिए घर में एक नो गैजेट ज़ोन बनाओ।’ अब बात यह है कि नो मोबाइल ज़ोन या नो गैजेट ज़ोन यह तो ठीक है, क्योंकि घर के हर कोने में गैजेट नहीं होता। पर हमारी आदतें घर के कोने कोने को गैजेट फ़्रेंडली बनाती हैं। हम सभी काम को छोड़ कर मोबाइल सर्फ़िंग की आदत पड़ गई है। अक़्सर हम काम को छोड़ कर या काम ख़त्म होते ही सर्फ़िंग करने बैठ जाते हैं। युवकों को जिस तरह पान मसाले या सिगरेट की लत लगती है, अब उसी तरह मोबाइल की लत लग चुकी है। भले ही कोई चीज़ अपने काम की न हो, हम उसमें अपना समय बरबाद करते रहते हैं। हम सभी को ऐसा करते देख हमारे बच्चे भी वह सब सीखते हैं। माँ-बाप को मोबाइल का उपयोग करते देख उनके अंदर भी जिज्ञासा जागती है कि इसमें ऐसा क्या है, जो मम्मी-पापा इसमें देखते रहते हैं। परिणामस्वरूप कम उम्र में ही बच्चा पेरंट्स के हाथ से मोबाइल छीनने की कोशिश करने लगता है। अधिकतर मामलों में तो पेरंट्स ही बच्चों को शांत कराने, खिलाने या अपना काम निपटाने के लिए उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। इसी तरह धीरे-धीरे बच्चे भी मोबाइल के आदी बन जाते हैं। उनमें आधी शरारत इस तरह से तो आधी शरारत मोबाइल में देख कर डेवलप होती है। 

शिकायत के पहले कारण समझो

ज़्यादातर पेरंट्स की यह शिकायत होती है कि मेरा बच्चा मोबाइल का उपयोग बहुत ज़्यादा करता है। उसका पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लगता। यह शिकायत करने के पहले बच्चा ऐसा क्यों करता है, इसका कारण जानें। आप इस बात का पता करें कि आप का बच्चा इसका आदी क्यों बना है। कहीं इसके पीछे आप ख़ुद तो ज़िम्मेदार नहीं हैं? यह सीधा-सादा सवाल ख़ुद से पूछें और इसका ऑनेस्ट जवाब भी ख़ुद से ही पाएँ। अपने बच्चों की मोबाइल देखने की आदत और ज़िद के पीछे कहीं न कहीं हम ख़ुद ज़िम्मेदार होते हैं। एक उम्र में अपने आराम के लिए बच्चों को मोबाइल देने में हम नहीं सोचते कि आगे चल कर यह चीज़ दोनों के लिए ख़तरनाक हो सकती है। भले ही आप मोबाइल के अंदर बच्चों को ‘राइम’(बाल-गीत) देखने के लिए देती हैं, पर यह आदत गंदी है। क्योंकि कुछ समय तक प्रेम से राइम देखने वाला बच्चा समय के साथ शार्ट्स और रील भी देखने लगता है। और फिर कुछ दिनों गेम खेलने लगता है। और जब तक आपकी समझ में आता है कि उसकी यह आदत उसकी पढ़ाई में समस्या पैदा कर रही है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। क्योंकि अमुक उम्र के बाद बच्चों की मोबाइल की लत छुड़ाना लोहे के चने चबाने जैसा मुश्किल हो जाता है। इस प्रोसेस में पहले तो आप को बच्चे को बग़ावती होते देखना पड़ेगा, उसके बाद उनके कांसंट्रेशन को घायल होते देखना पड़ेगा। उनका व्यवहार भी बदल जाएगा है और इसका उनकी पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा। 

मोबाइल से बच्चों को दूर रखना क्यों ज़रूरी है

हम सभी बच्चों के अधिक मोबाइल के उपयोग की शिकायत तो कर लेते हैं, पर उन्हें मोबाइल से दूर कैसे रखा जाए, यह जटिल प्रश्न है। अब समझ लीजिए कि बच्चों में मोबाइल का क्रेज़ कम करने के लिए चार से पाँच साल की उम्र से ही उन्हें इससे दूर रखना ज़रूरी है। अमुक उम्र में उन्हें इसकी लत लग गई तो दस साल से अधिक की उम्र के बाद उन्हें इससे दूर करने की कोशिश की गई तो वे बग़ावती हो सकते हैं। अगर ऐसा नहीं होने देना चाहती हैं तो बच्चे को उसकी मनपसंद किसी अन्य ऐक्टिविटी में व्यस्त रखें। उससे घर का थोड़ा काम कराएँ। मात्र होमवर्क या पढ़ाई कराने के साथ उसके मनपसंद दूसरा काम कराने में उसका मन लगाने की कोशिश करें। सब से बड़ी बात आप ख़ुद भी बच्चों के सामने मोबाइल का उपयोग करना टालें। अगर आप बच्चे के सामने मोबाइल का उपयोग नहीं करेंगी तो आप को देखकर बच्चा भी यह बात सीखेगा। अगर आप उसके सामने मोबाइल ले कर बैठेंगी तो स्वाभाविक है, वह भी वैसा ही करेगा। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो मोबाइल से दूर ही रहें। साथ मिल कर किया गया प्रयास हमेशा सफल होता है, इसलिए साथ मिल कर प्रयास करें। 

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